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________________ (१.८) क्रोध-मान से 'मैं', माया-लोभ से 'मेरा' १०३ प्रश्नकर्ता : अर्थात् जब से अव्यवहार में से व्यवहार राशि में आता है तभी से? दादाश्री : सभी जगह। अव्यवहार में या व्यवहार में, सभी जगह। जहाँ देखो वहाँ पर यही है। ऐसा नहीं है कि अव्यवहार में कहीं भोक्ता नहीं था। भोक्ता थे, भयंकर वेदना, वेदना भी सहन नहीं होती थी। प्रश्नकर्ता : तो उस वेदना का भोक्ता वह अहंकार ही था? दादाश्री : तो फिर और कौन? वह कर्ता नहीं था। बुद्धि के बिना कर्ता नहीं बन सकता। प्रश्नकर्ता : वह अहंकार भी भुगतता है क्या? दादाश्री : हाँ! भुगतता है। प्रश्नकर्ता : तो पहले से ही विशेष परिणाम से अहंकार उत्पन्न हो चुका था? दादाश्री : सिर्फ विशेष परिणाम ही नहीं। और फिर विशेष परिणाम खत्म हो जाए तो अहंकार खत्म हो जाता है, तो वहाँ पर वापस दूसरा विशेष परिणाम उत्पन्न होता है। इसलिए क्योंकि साथ के साथ ही हैं। दो द्रव्यों के साथ में होने के कारण विशेष परिणाम उत्पन्न होता जाता है और ये जब अलग हो जाते हैं तब विशेष परिणाम खत्म हो जाते हैं। (उस समय मूल विशेष भाव और उसकी वजह से जो अहम् है, वे हमेशा रहे हुए हैं ही।) व्यवस्थित और पुनर्जन्म प्रश्नकर्ता : तो पुनर्जन्म और साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स के बीच क्या संबंध है, ज़रा समझाइए। दादाश्री : यह साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स ही पुनर्जन्म का मूल कारण है। यह साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स पुनर्जन्म साबित कर देता है। प्रश्नकर्ता : तो फिर क्या आत्मा का पुनर्जन्म होता है ?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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