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________________ (१.८) क्रोध-मान से 'मैं', माया-लोभ से 'मेरा' १०१ दादाश्री : उपयोग होने पर कर्म बंधन होता है। कर्म बंधन अर्थात् उसका डिस्चार्ज होते समय यह इफेक्ट आता है। वही है यह सब, अंदर अंत:करण, मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार। प्रश्नकर्ता : इस ज्ञान के बाद जो मन रहा, वह इफेक्टिव है? दादाश्री : फिर इफेक्टिव है, बस! अज्ञानी में भी इफेक्टिव है लेकिन ऐसा है कि इफेक्टिव में से अंदर कॉज़ेज़ उत्पन्न होते हैं जबकि इनमें (ज्ञान लेने के बाद में) कॉज़ेज़ उत्पन्न नहीं होते, कॉज़ेज़ बंद हो जाते हैं। प्रश्नकर्ता : चित्त का भी इसी प्रकार से है ? दादाश्री : मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार, सभी। पूरा ही अंत:करण, वह पूरा इफेक्टिव ही है। और सिर्फ अंत:करण नहीं है, यह बाह्यकरण भी इफेक्ट है। दोनों करण मात्र इफेक्ट ही हैं। इस अंत:करण में जो होता है उसके बाद फिर क्रोध बाहर निकलता है। पहले अंत:करण में होता है। पहले अंत:करण में बाप के साथ लड़ता है और बाद में बाहर लड़ता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन अंत:करण तो इफेक्ट है फिर यह होता किस तरह से है? दादाश्री : हाँ, लेकिन यह भी इफेक्ट है और वह भी इफेक्ट है लेकिन यह सूक्ष्म इफेक्ट है और क्रोध में स्थूल इफेक्ट होता है। इसलिए, क्योंकि बाहर निकल जाता है। प्रश्नकर्ता : अंत:करण न हो तो फिर क्या क्रोध-मान-माया-लोभ उत्पन्न होंगे? दादाश्री : नहीं, फिर कुछ भी नहीं। प्रश्नकर्ता : तो फिर सर्व प्रथम क्या है ? पहले आपने ऐसा कहा था कि सर्व प्रथम क्रोध-मान-माया-लोभ होते हैं और बाद में यह सारा इफेक्ट आता है।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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