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________________ (१.८) क्रोध-मान से 'मैं', माया-लोभ से 'मेरा' अब मैं आपको आत्मा की बात बताता हूँ। अब भगवान ने क्रिएट नहीं किया है, वह भी बताता हूँ आपको। और अहंकार है, वह बात भी सही है, दीये जैसी बात है। तो बीच में वह अहंकार कौन है ? और आप पूछ रहे हो कि अहंकार कब शुरू हुआ? तो जब शुरू होता तब तो जगत् की बिगिनिंग कहलाती। उसकी बिगिनिंग भी नहीं है। अहंकार उत्पन्न होता है और अहंकार का नाश होता है। अहंकार उत्पन्न होता है और अहंकार का नाश होता है लेकिन नाश होते समय, वह बीज डालकर नष्ट होता है। अतः यह शुरू नहीं हुआ है लेकिन अहंकार कैसे उत्पन्न होता है ? हमेशा से था ही। सब से पहले अहंकार किस तरह से उत्पन्न हुआ होगा? यानी कि शुरू से है ही। इसकी शुरुआत नहीं है लेकिन यों हम साधारण रूप से कहते हैं कि भाई अहंकार किस वजह से उत्पन्न हुआ, किस प्रकार से उत्पन्न हुआ? प्रश्नकर्ता : सब से प्रथम इफेक्ट कैसे शुरू हुआ? दादाश्री : कॉज़ेज़ के बिना कभी भी इफेक्ट हो ही नहीं सकता। 'उसने' यह कॉज़ डाला कि 'यह मैं हूँ और यह मेरा है' इसलिए फिर इफेक्ट शुरू हो गया। प्रश्नकर्ता : लेकिन पहली बार कॉज़ किस प्रकार से शुरू हुआ? दादाश्री : वही! (व्यवहार) आत्मा को दूसरा तत्त्व मिला इसलिए इस (आत्मा) तत्त्व को, उसे खुद को ऐसा लगा कि वास्तव में यह मैं हूँ'। उसी के साथ 'मैं और मेरा' शुरू हो गया और क्रोध-मान-मायालोभ शुरू हो गए। मूल रूप से तो 'यह' 'लाइट है' लेकिन जगत के लोगों ने कहा. 'आप चंदूभाई हो' और आपने भी मान लिया कि 'मैं चंदूभाई हूँ'! अतः 'इगोइज़म' खड़ा हो गया। वह 'इगोइज़म' मूल लाइट का 'रिप्रेजेन्टेटिव' बना और जिसने उस 'रिप्रेजेन्टेटिव' की लाइट के माध्यम से देखा, वह बुद्धि हुई! कषाय, कर्म कॉज़ और अंतःकरण हैं इफेक्ट प्रश्नकर्ता : आत्मा और पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है)
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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