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________________ [८] क्रोध-मान से 'मैं', माया-लोभ से 'मेरा' 'मैं' बढ़ा आगे... विशेष भाव में क्या हुआ? कि "मैं कुछ हूँ' और यह सब 'मैं जानता हूँ' और 'मैं कर रहा हूँ"। उससे विशेष भाव हो गया। इसीलिए संसार खड़ा हो गया। फिर देख-देखकर करने लगे। लोग शादी करते हैं, इसलिए शादी करता है। जगत् व्यवहार से चला, पूरा तूफान । क्या लकड़ी के लड्डू छोड़ देता है ? कहते ज़रूर हैं, लक्कड़ के लड्डू... प्रश्नकर्ता : अतः वह जो विशेष परिणाम उत्पन्न हुआ, उससे जो अहंकार उत्पन्न हुआ, वह इस पूरे जन्म में एक ही होता है न? दादाश्री : वह खत्म होता है और वापस बनता है, खत्म होता है और बनता है। यानी कि बीज गिरते हैं और वृक्ष बनता है, बीज गिरते हैं और वृक्ष बनता है। ऐसा चलता ही रहेगा। प्रश्नकर्ता : तो अगले जन्म में फिर उसमें से वृक्ष बनता है न? दादाश्री : उन सब कॉज़ेज़ (बीज) से वापस वृक्ष बनता है न! और वापस वृक्ष में से कॉज़ेज़ बनते हैं। एक सीधी बात ही, कॉज़ेज़ एन्ड इफेक्ट, बस चलता ही रहता है। प्रश्नकर्ता : जन्म भर एक ही अहंकार काम करता रहता है ? दादाश्री : तो क्या दूसरे पाँच-सात होंगे? अहंकार देह के साथ ही विलय हो जाता है। बस इतना ही। फिर नए कॉज़ेज़ करके जाता है आगे, उसके आधार पर अगले जन्म में दूसरा अहंकार उत्पन्न होता है।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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