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________________ आप्तवाणी - १४ ( भाग - १ ) पर बंद हो गया, ऑटोमैटिक, और फिर उससे आगे वे जा नहीं पाए । साधु-र - संत कुछ दूर तक गए और फिर कह दिया, 'यह हो गया, भगवान ने बना दिया, यह सब भगवान चलाता है'। अतः व्यवहार शुरू हो गया साधु महाराजों का। जैसे कि भगवान के घर की सारी बात साधु महाराज जानते हों कि, 'घर चल रहा है या नहीं चल रहा, भगवान का खर्च चल रहा है या नहीं चल रहा ? खर्चा पूरा पड़ता है या नहीं ?' वह सारी बातें फिर उलझन भरी ही रहीं । ९४ यहाँ अक्रम विज्ञान में पूरा सिद्धांत पता चल गया है, पूरा सिद्धांत । होल (पूरा) सिद्धांत वैज्ञानिक भाषा में निकला है, अविरोधाभास। यह तो पूरा यह विभाव, सभी ने विभाव कहा है। लेकिन मैं तो बहुत सोचता था, 'अरे! यह विभाव किस तरह से होता है ? इस प्रकार वापस आत्मा का विभाव कहते हैं और यों वापस कहते हैं कि, शास्त्र कहते हैं कि आत्मा के व्यतिरेक गुण हैं ये ' । यह सारी लठ्ठबाज़ी चली। प्रश्नकर्ता : अब स्पष्ट होता जा रहा है, दादाजी । दादाश्री : स्पष्ट हो रहा है न ? समाधान होना चाहिए । प्रश्नकर्ता : समाधान हो जाता है, दादाजी । दादाश्री : हाथी के अंदर बैठकर भगवान ने उसे बनाया। इसे किस प्रकार से, किसने बनाया है ? यह अनुपचारिक है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् सब अनुपचारिक ही होता है न ! दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : सर्वस्व अनुपचारिक है ? दादाश्री : अनुपचारिक है । प्रश्नकर्ता: और सभी को अनुपचारिक समझने वाला ही सहज हो सकता है न? दादाश्री : क्या और कोई चारा है ? इसमें से निकलना हो तो वही
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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