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________________ (१.७) छः तत्त्वों के समसरण से विभाव दादाश्री : विज्ञान से यह संसार बना है, पूरा ही । ८९ I I संसार जिन दोषों से भरा हुआ है, वह वस्तुओं के संसर्ग दोष की वजह से है! ‘ज्ञानी पुरुष' उस संसर्ग दोष से अलग कर देते हैं । उसके बाद दोनों अपने-अपने गुणों में रहते हैं । जिस प्रकार चिड़िया दर्पण में चोंच मारती रहती है, लेकिन समय परिपक्व होने पर वह बंद हो जाता है। उसी प्रकार दर्पण का संसर्ग दोष लगने से उसमें आपके जैसे ही दूसरे 'प्रोफेसर' दिखाई देते हैं न ! यह संसार भाव आत्मा का गुणधर्म नहीं है, यह पुद्गल का गुणधर्म भी नहीं है। पुद्गल को भी यह संसार भाव अच्छा नहीं लगता। यह उसके काम ही नहीं आता न! आत्मा के भी काम नहीं आता। लेकिन दोनों के मिलने से यह विशेष भाव उत्पन्न हो गया। इसमें आत्मा का भी दोष नहीं है और पुद्गल का भी दोष नहीं है । किसी का भी दोष नहीं है। I नियति का स्थान प्रश्नकर्ता : खुद आत्मा है इसके बावजूद भी बाकी के जो पाँच तत्त्व हैं, वे इस पर प्रभाव डाल देते हैं इसलिए व्यतिरेक गुण उत्पन्न हो जाते हैं ? दादाश्री : नहीं! ऐसा है ही नहीं कि कोई किसी पर किसी भी प्रकार का प्रभाव डाल सके। यदि कोई प्रभाव डाल दे न, तो वह बलवान कहलाएगा, लेकिन सभी समान हैं। ऐसा नहीं है कि कोई किसी में दखल कर सके। ऐसा नहीं है कि कोई किसी का नाम ले सके। प्रश्नकर्ता : वह सामीप्य भाव भी नियति के अधीन है ? दादाश्री : सामीप्य भाव ? इसी को नियति कहते हैं, * इस सारे भाग को नियति कहा जाता है। यह क्या है या किसके अधीन है ? तो कहते हैं कि, 'नियति के अधीन है'। 'तो क्या यह जो नियति है वह पक्षपाती धर्म वाली है?' तो कहते हैं, 'नहीं, निष्पक्षपाती है'। वीतराग *नियति के लिए सत्संग आप्तवाणी - ११ (पू.) गुजराती का पेज - २७० से ३३०
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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