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________________ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) विशेष भाव शुरू हुआ, उसका कोई समय तो होगा न? उसका समय होता तो क्या उसकी प्राप्ति नहीं की जा सकती, लाखों, करोड़ों अरबों... साल? दादाश्री : 'विशेष भाव' तो समझाने के लिए कह रहे हैं वर्ना दशा अनादि है। नहीं है दोष इसमें किसी का प्रश्नकर्ता : दादाजी, ये जो छः तत्त्व हैं और 'व्यवस्थित' नाम की जो शक्ति है, वह छः तत्त्वों से बाहर है या अंदर? दादाश्री : वह छः तत्त्वों के अंदर ही है, छः तत्त्वों से बाहर तो कोई वस्तु है ही नहीं। प्रश्नकर्ता : 'व्यवस्थित' नाम की जो शक्ति है, उसका समावेश कौन से तत्त्वों में होता है? दादाश्री : वह तत्त्व नहीं है। तत्त्वों के अंदर है। वह कोई तत्त्व नहीं है। और यदि किसी को तत्त्व कहना हो, तो उसे पुद्गल कहना पड़ेगा। पुद्गल तत्त्व नहीं है। परमाणु, वह तत्त्व है और आत्मा, वह भी तत्त्व है। पुद्गल तत्त्व नहीं माना जाता। पुद्गल उसका (तत्त्व का) विभाविक परिणाम है, विशेष परिणाम है। पुद्गल मात्र विशेष परिणाम है। व्यवस्थित भी विशेष परिणाम है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् यह जो व्यवस्थित है, क्या वह छः तत्त्वों का खेल है? दादाश्री : जैसे कि जब 2 H और O मिलते हैं तो इसमें किसी का भी खेल नहीं है। वे जब मिलते हैं तब उनका स्वभाव वैसा ही हो जाता है। उसी प्रकार जब ये तत्त्व एक-दूसरे के संसर्ग में आते हैं तब ऐसा रूप बन ही जाता है। किसी को बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। प्रश्नकर्ता : होता ही रहता है ? इट हैपन्स?
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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