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________________ न कि अन्य चार शाश्वत तत्त्वों के समीप आने से। पुद्गल परमाणुओं के मूल गुण, सक्रियता की वजह से विभाविक पुद्गल उत्पन्न हो जाता है। चेतन को पराई उपाधि (बाहर से आने वाला दुःख) है, उसे खुद को कुछ भी नहीं होता है। इसमें दोनों तत्त्वों के पास-पास आने से जो असर होता है, सक्रियता के गुण के कारण पुद्गल उसे पकड़ लेता है, तुरंत ही। जो कि इसमें स्वतंत्र रूप से गुनहगार नहीं है। यदि दोनों अलग हो जाएँ तो फिर जड़ तत्त्व पर कोई असर ही नहीं होगा। अब दोनों तत्त्वों में विशेष भाव उत्पन्न होता है। क्या दोनों में अलग-अलग विभाव होता है या दोनों के मिलने से एक (विभाव) होता है? पुद्गल जीवंत वस्तु नहीं है, वहाँ पर भाव नहीं है लेकिन वह जिस प्रकार के विशेष भाव को ग्रहण करता है, वैसा ही बन जाता है। मूल रूप से अज्ञानता के कारण, आत्मा में यह विशेष भाव उत्पन्न होता है। फिर पूरी बाज़ी पुद्गल की सत्ता में चली जाती है। आत्मा पुद्गल के पिंजरे में बंद हो जाता है। अज्ञान से जेल बनी है, ज्ञान से मुक्ति प्राप्त करता है। 'ज्ञानी' के ज्ञान से 'कॉज़ेज़' बंद हो जाते हैं, उसके बाद पुद्गल की सत्ता खत्म हो जाती है। यदि विभाव दशा वगैरह की नींव में अज्ञान हो तभी यह सब आगे बढ़ता है, वर्ना संपूर्ण मुक्त ही है न! __ आत्मा और पुद्गल परमाणुओं के सामीप्य भाव से विशेष परिणाम' उत्पन्न हो जाते हैं। उससे अहम् उत्पन्न होता है। इसमें आत्मा के मुख्य गुण बदले बगैर, स्वरूप में बदलाव हुए बगैर भी विशेष परिणाम आ जाता है। स्वरूप में बदलाव होने पर वह विरुद्ध भाव हो जाता है। खुद चेतन है, इस वजह से आत्मा में पहले विशेष भाव हुआ। जड़ में चैतन्यता नहीं होने के कारण पहले उसमें विशेष भाव उत्पन्न नहीं हो सकता। विशेष भाव उत्पन्न होने के कारण दोनों अपने मूल भाव को चूक जाते हैं और संसारवृद्धि होती ही रहती है। जब आत्मा मूल भाव में आ ___14
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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