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________________ (१.५) अन्वय गुण-व्यतिरेक गुण ५७ अपने आप अलग नहीं हो सकता, मुक्त पुरुष छुड़वा देते हैं। जो इनसे मुक्त हो चुके हैं, वे छुड़वा देते हैं। यही नियम है इसका। अमल, वही है मोहनीय __जैसे कि यहाँ पर नगीनदास नाम का कोई व्यक्ति है, वह पूरे गाँव का सेठ है और पूरा गाँव उसकी तारीफ करता है कि, 'नगीनदास सेठ की तो बात ही अलग है। सभी की हेल्प करते हैं, सब काम करते हैं, लेकिन रात को साढ़े आठ बजते ही वे इतनी ज़रा सी पीते हैं। उससे कोई तकलीफ नहीं होती, नुकसान नहीं होता, ज़रा सी पीते हैं। लेकिन एक दिन उनका फ्रेन्ड आ गया। उसने कहा, 'दूसरी प्याली लेनी पड़ेगी', तो उन्होंने दूसरी प्याली ली तो चढ़ गई। अब चढ़ेगी या नहीं चढ़ेगी? तब फिर वे नगीनदास रहेंगे या कुछ बदलाव हो जाएगा? प्रश्नकर्ता : वह परेशानी है। दादाश्री : फिर वे क्या कहते हैं, 'मैं तो प्रधानमंत्री हूँ'। तब क्या हम नहीं समझ जाएँगे कि, 'इन पर कुछ असर हो गया है। इन्हें कुछ हो गया हैं। किसका असर है? प्याली का। इसी प्रकार से इस पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) के दबाव का असर हो गया है यह सारा। उससे व्यतिरेक गुण उत्पन्न हो गए। जो आत्मा के भी नहीं हैं और जड़ के भी नहीं हैं। क्रोध-मान-माया-लोभ और उसे कम शब्दों में कहने जाएँ तो 'मैं' और 'मेरापन' उत्पन्न हुआ। यह जो पूरी गाड़ी चल रही है, आत्मा उसका भी ज्ञाता-दृष्टा है। अभी भी है लेकिन अपनी मान्यता बदलती नहीं है न! मान्यता जब बदलती है तब यह जो उपाधि (परेशानी) है, वह उपाधि छूट जाती है, जैसे कि जब शराब का नशा उतर जाता है न, उसके बाद नगीनदास वापस जैसे थे वैसे ही हो जाते हैं। उतर जाए तो हो जाएँगे या नहीं हो जाएँगे? तब तक 'प्रधानमंत्री हूँ' वगैरह उल्टासुल्टा बोलते रहते हैं। यह उपाधि (बाहर से आने वाला दुःख) है, पराई उपाधि है यह। देखी है ऐसी उपाधि? प्रश्नकर्ता : देखी है, अनुभव की है।
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
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