SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) बार अंदर योनियों में घूमता रहता है, तो वह किसके अधीन है? वह नियति के अधीन है। 'व्यतिरेकी गुण टाढा, निज सत्संग में।' ___ जो व्यतिरेक गुण हैं, क्रोध-मान-माया-लोभ, वे सब निज सत्संग में अर्थात् आत्मा के सत्संग में सब बिल्कुल शांत हो जाते हैं। यहाँ पर वे व्यतिरेक गुण कब छूटेंगे, जब खुद की दृष्टि खुद के स्वभाव की ओर हो जाएगी, तब छूटेंगे। अभी जो दृष्टि है, वह विशेष परिणाम में है इसलिए क्रोध-मान-माया-लोभ उत्पन्न हो जाते हैं। ज्ञानी उस दृष्टि को बदल देते हैं और जब से दृष्टि स्वाभाविक हुई तभी से मुक्त हो जाएगा! अब व्यतिरेक दोषों के उत्पन्न होने से इस शरीर की रचना हो जाती है। उन्हें खुद को उसमें रहना पड़ता है, कोई चारा ही नहीं है न! और व्यतिरेक दोष किस तरह से बंद हो सकते हैं? जब हम ज्ञान देते हैं तब दोनों अलग हो जाते हैं, तो व्यतिरेक दोष चले जाते हैं। फिर (नया) शरीर नहीं मिलता। प्रश्नकर्ता : यह जो जड़ और चेतन से व्यतिरेक गुण उत्पन्न होते हैं, वे व्यवस्थित शक्ति की वजह से ही हैं न? दादाश्री : व्यवस्थित शक्ति, वह तो बाद में उत्पन्न हुई चीज़ है। हम तो उसकी डिज़ाइन को ऐसा कहते हैं कि यह व्यवस्थित है, बाकी यह तो दोनों की उपस्थिति से अपने आप उत्पन्न हो ही जाता है, नियम से हो ही जाता है। प्रश्नकर्ता : जड़ और चेतन के संयोगों से जो व्यतिरेक गुण उत्पन्न होते हैं, वे व्यतिरेक गुण उत्पन्न नहीं हों, दोनों अलग रहें, उसके लिए हमें क्या कंट्रोल करना चाहिए? किस तरह से करना चाहिए? दादाश्री : वैसा कुछ करने का नहीं रहा। अलग हुए, दोनों दूर हो गए। जिसका संयोग छूट गया, इसका मतलब अलग हो गया। वह
SR No.034306
Book TitleAptavani 14 Part 1 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Other
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy