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________________ પ્રેરણાની પાવનમૂર્તિ પરિશિષ્ટ-૬ जिनालय मेरु पर्वत की भांति खडा किया । राज वैद्य जसवंतराय जैन ने यह स्तवना करने के लिअ मुझे निर्देश किया, किन्तु खेद है कि वे इन ५ गाथाओं को सुने बिना ही पंचत्य को प्राप्त हो गए । श्री मृगावतीजी म. की संस्तावना (प्राकृतमा) - श्री भंवरलाल नाहटा गुणगण मणि सुनिहाणा जणणी जस्स सीलवई अज्जा । वेरग्ग रंग रंजिय किसोर वये चारित्त गहणत्थ ।।१।। जुगवीरो आयरिओ सव्व गच्छ समभाव धर पवरो । गहिय सह पवज्जा गुरु वल्लह सूरि कर कमले ।।२।। कलिकाया महाणयरे पज्जोसवण पवयणो सुकओ । सुविहिय संधाराहण कारविय सुकित्ति वित्थारो ।।३।। जाओ महप्पभावो संविग्ग रंग, पवड्ढमाण पच्चक्खो । कंगड कोट्दरिओ सुसम्म निव कय नेमि जिण काले ।।४।। ढिल्लयां वल्लह भुवर्ण बहु वित्थर आरंभिओ जेण । चण्डीगढे मेरुसमो जिणालयो सुह रायहाणीसु ।।५।। जसवंतराय विज्जो कहिय मिणं संथवण कज्जे । हा! खेय, पत्त पंचत्त अनिसुणिय गाहा पंचगा एसा ।।६।। गुणों के समूह रूप रत्नों की निधान, आर्या श्री शीलवती जिनकी जननी थीं, ऐसी किशोर वयस्का (मृगावतीश्रीजी) चारित्र ग्रहण के हेतु वैराग्य रंग में रंजित हो गई। सर्व गच्छों के प्रति समभाव धारण करनेवाले, युगवीर आचार्य श्री विजयवल्लभसूरिजी गुरु महाराज के करकमलों से माताजी के साथ ही आपने भगवती प्रव्रज्या ग्रहण कर ली । कलकत्ता महानगर में जिन्होंने (गुरु महाराज के आदेश से) सुविहित खरतर संघ को पर्युषणा पर्वाराधन प्रवचनादि देकर कराया, जिससे कीर्ति का विस्तार हुआ । आर्या श्री का संवेग रंग प्रत्यक्ष बढा और महान प्रभावशालिनी हुई । आपने नेमिनाथ तीर्थंकर के समय में नरेश्वर सुशर्मा के स्थापित किए तीर्थ, नगरकोट कांगडा का उद्धार किया । आपने दिल्ही में गुरु महाराज श्री विजय वल्लभसूरि के स्मृति भवन का भागीरथ कार्य प्रारम्भ किया और पंजाब की राजधानी चण्डीगढ़ में भी शुभ १. श्रद्धांजलि - महेन्द्र कुमार मस्त वह महान तेजोमयी तथा युगदृष्टा साध्वी मृगावतीश्रीजी, जो परम्परा थी इस युग की आदि साध्वी ब्राह्मी व सुन्दरी की, जो परम्परा थी चन्दनबाला की और जो मिसाल थी मध्ययुगीन याकिनी महत्तरा की । वह मृगावती जो सुनाया करती थी यशोविजय आनन्दघन व श्रीमद् राजचन्द्र, जो कहा करती थी - स्वाध्याय करो और जागृत करो कुण्डलिनी वह जो पथानुगामी थी आत्म वल्लभ की और उनके आदर्शों की । वह मृगावती जो जन्मदायिनी थी कांगडा, लहरा और वल्लभ स्मारक से तीर्थों की, वह जो स्मारक बनाते-बनाते खुद एक स्मारक हो गई, यह जिसने दी नई विचार दृष्टि और भावी पीढियों को दे गई मंदिर माता पद्मावती । वह मृगावती जिसने शिलान्यास किया उत्तर भारत के सबसे बड़े कैंसर अस्पताल का २०34
SR No.034293
Book TitlePrernani Pavan Murti Sadhvi Mrugavatishreeji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumarpal Desai, Malti Shah
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages161
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size2 MB
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