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________________ महाराज के शुभाशीर्वाद और परम पूज्य अध्यात्मयोगी निःस्पृह शिरोमणि परम गुरुदेव पंन्यास प्रवर श्री भद्रंकरविजयजी गणिवर्य श्री की सतत कृपा वृष्टि, परम पूज्य सौजन्यमूर्ति, आचार्य देव श्रीमद्विजय प्रद्योतन सूरीश्वरजी महाराज साहेब की सतत प्रेरणा और परम पूज्य उपकारी गुरुदेव आचार्य देव श्रीमद् विजय कुन्दकुन्द सूरीश्वरजी महाराज की अदृश्य कृपा और मेरे संसारी पिता T. मुनिराज श्री महासेन विजयजी म. की सहानुभूति और मेरे गुरु बन्धु मुनिश्री हेमप्रभबिजयजी की आर्य सहायता प्राप्त होती रही है। उन ज्यों की असीम शक्ति के बल से ही यह कार्य निर्विघ्न परिपूर्ण हुआ है। उन सब उपकारीयो के पावन चरणों में कोटिशः वंदना पूज्य कलिकाल सर्वज्ञ श्री. हेमचन्द्रसूरी. श्वरजी महाराजा की व्याकरण विषयक यह कृति कितनी सरल और सुगम है यह तो अभ्यास करने वाले ही समज सकते हैं । कहा भी है कि व्याकरणान् पद सिद्धिः पदसिद्धेरर्थनिर्णयो भवति । अर्थात् तत्वज्ञानं तत्वज्ञानात् परंश्रेयः॥ अर्थात् 'व्याकरण से पद की सिद्धि होती हैं । पदसिद्धि से अर्थ का निर्णय होता हैं । और अर्थ के निर्णय से तत्व की सिद्धि होती है । तत्त्वसिद्धि मुक्ति की प्राप्ति में हेतुभूत बन सकती है ।। इस दृष्टि से व्याकरण के अध्ययन का महत्त्व है । अभ्यासी महात्माओं इस ध्येय पूर्वक इस ग्रंथ का अध्यन करेंगे तो संपादन का हमरा श्रम विशेष सफल होगा । जैसे तो श्रत सेवा का आर्व लाभ मिलने से संपादन का श्रम सफल ही है। यह दुसरे विभाग के अफरीडींग आदि के लिये मुनिश्री हितविजयजी और मुनिश्री अनन्त. दर्शन विजयजी का भी समय समय पर अर्ब सहयोग रहा है । इसके प्रिन्टोंग में गौतम आर्ट प्रिन्टर्स (ब्यावर) के मालिक श्रीफत्तेचन्दजी जैन के अर्व सहयोग से यह कार्य इतना जल्दी हो रहा है । इत ग्रंथ के प्रिन्टी में मतिमंदता से दृष्टिदोष से या प्रेसदोष से कोई क्षतियाँ रही हो. वह सुज्ञजन सुधारने की कृपा करे । खास-खास अद्धियां का शुद्धिपत्र दिया गया है। -घनसेन विजय
SR No.034256
Book TitleSiddh Hemhandranushasanam Part 02
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorUdaysuri, Vajrasenvijay, Ratnasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages520
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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