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________________ अध्याय से सात अध्याय तक 'लधुन्यास' की प्रेस कोपी तैयार की । जिससे प्रिन्टींग आदि में अति सरलता रही । इस प्रकार अनेक महानुभावों की साहाय्य से संपादन कार्य प्रारम्भ हुआ । कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य विरचित श्री सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन के ऊपर स्वोपज्ञ वृहद्वृत्ति आज भी उपलब्ध हैं । उस धृहब्रुत्ति पर कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य श्री ने वृहन्न्यास (८४००० श्लोक प्रमाण) की रचना की थी । किन्तु दुर्भाग्य से वह ग्रन्थ पूर्णरुप से उपलब्ध नहीं है । उसका आंशिक भाग ही उपलब्ध हैं । उस बृहद्वृत्ति के किलष्ट स्थानों पर चान्द्रगच्छशिरोमणि परम पूज्य आचार्य देव श्रीमद् विजय देवेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा के शिष्य रत्न परम पूज्य आचार्य देव श्री कनक प्रभसूरिश्वरजी महाराज ने 'न्याससारसमुद्धार' की रचना की है । सद्भाग्य से वह पूर्ण ग्रन्थ आज भी उपलब्ध है। "श्री सिद्ध हेमचन्द्रशब्दानुशासन की वृहदवृत्ति और न्याससार समुद्धार का प्रथम मुद्रण शासन सम्राट् परम पूज्य आचार्य देव श्रीमद्विजय नेमिसूरीश्वरजी महाराजा का प्रेरणा से प. पू. आचार्य म. श्रीमद् विजय उदय सूरीरश्वजी म० ने करवाया था। संवत् १९६२ में पोरवाडशातीय भगुभाई आत्मज मनसुखभाई की ओर से प्रकाशन हुआ था। इस ग्रथ के पुनः प्रकाशन में उपर्युक्त पूर्व की आवृत्तियों का आधार लिया गया है। जहांजहां मुद्रण संबंधी अशुद्धियां थी उन्हें भी परिमार्जित करने का शक्य प्रयत्न किया गया है। प्रत्येक सूत्र की हदवत्ति के साथ ही लघुन्यास हो तो अध्ययन में विशेष सुविधा रहेगी. इसलिए प्रत्येक सूत्र के साथ ही लधुन्यास लिया है । पूर्व प्रकाशित लघुन्यास में जहां-जहां साक्षी सूत्रों के सांकेतिक नाम दिए गए थे-उन सूत्रों के क्रमांक का भी इसमें निदेश कर दिया है । अध्ययन-अध्यापन में सविधा की दृष्टि से इस महाकाय रथ को तीन भागों में विभक्त किया गया है। प्रथम भाग-१ से १० पाद (ढाई अध्याय) । द्वितीय भाग-११ से २० पाद (ढाई अध्याय) स्वोपज्ञ-उणादि, धातुपाठ । तृतीय भाग-२१ से २८ पाद (दो अध्याय) लिंगानुशासन, सूत्रोकाअकारादिक्रम । आठ अध्यात्मक इस विशाल ग्रथ को तीन भाग में प्रकाशित करने का निर्णय होने पर एक ही समय में अलग-अलग तीन प्रेसों में मुद्रण कार्य प्रारम्भ हुआ । आज इस बात का आनंद है किअठाइस वर्ष पहेले जो भावना बीज रूप से अंतर में पड़ी थी, वह आज एक विशाल वृक्ष रुप होकर फलीभूत हो रही हैं। अभ्यासीओं के लिए छत्तीस हजार से भी अधिक श्लोक प्रमाण और सोलहसो से भी अधिक पृष्ठ का विस्तार रखता हुआ यह सिद्ध हेमबृहदवृत्ति लघुन्यास प्रथ का प्रथमभाग प्रका. शित होने के बाद अल्प समय में ही दूसरा भाग प्रकासित हो रहा है। तीसरा भाग जल्दी प्रकाशित हो इसलिए प्रकाशक संस्था प्रयत्न कर रही हैं । ___ इस ग्रथ के पुन: प्रकाशन के भगीरथ कार्य की निर्विघ्न समाप्ति के लिए परम पूज्य जिनशासनप्रभावक, संघहितचिंतक, सुविशाल गच्छाधिपति, आचार्य देवश्रीमद विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी
SR No.034256
Book TitleSiddh Hemhandranushasanam Part 02
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorUdaysuri, Vajrasenvijay, Ratnasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages520
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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