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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७ इतना निर्बल हो जाता है कि कुछ भी सहन नहीं कर सकता । ऐसे समय में उसके समक्ष रोते हुए बातें करना, दबी जबान से बोलना, दुःखी को और दुःखी करना है। उसमें हिम्मत जाग्रत करें, उसके भावों में सबलता लाएँ। उसे डिगाएँ नहीं। उसे उसकी स्थिति का भान कराते हुए, प्रभु-स्मरण में तल्लीन रहने की प्रेरणा करें। संसार की असारता एवं आत्मा की अमरता का सन्देश सुनाएँ ताकि उसका अज्ञान दूर हो जाए एवं शारीरिक वेदनाएँ वह समता भाव से सहन कर सके। जाप, भजन, सामूहिक प्रार्थना आदि आयोजन कर वैराग्यमय वातावरण तैयार करें। यदि उस व्यक्ति ने कुछ संकल्प ले रखे हों तो उन्हें दृढ़ता से पालन करने का साहस बढ़ावें । यदि डाक्टरों के परामर्श से अथवा ऐसा आभास होने लगे कि बीमार व्यक्ति कुछ ही घंटों का मेहमान है तो उसे सचेत करें एवं त्याग मार्ग की ओर बढ़ने की प्रेरणा करें। यदि वह व्यक्ति स्वेच्छा से किसी त्याग मार्ग के संकल्प की अथवा संथारे की भावना जाहिर करता हो तो द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को देखते हुए शीघ्र निर्णय लें, लेकिन किसी भी परिस्थिति में उसे डिगाएँ नहीं। यदि आसपास में संत-मुनिराज विराजते हों, तो उनके दर्शनों का लाभ उसे अवश्य दिलवाएँ तथा उनसे पच्चक्खाण वगैरा अवश्य करवाएँ तथा मांगलिक सुनवाएँ । आस-पास मौजूद व्यक्तियों की जरासी सूझबूझ से मरने वाले व्यक्ति का मृत्यु मंगलमय बन सकती है। For Private and Personal Use Only
SR No.034243
Book TitleMrutyu Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP M Choradia
PublisherAkhil Bhartiya Jain Vidvat Parishad
Publication Year1988
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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