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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भेद विज्ञान (शरीर और आत्मा अलग-अलग हैं) की जानकारी होने से वे उन्हें समता भाव से सहन करते हैं तथा अपने पापों की आलोचना और कर्मों की निर्जरा करते हैं। जितना-जितना कषायों को क्षीण करते हैं तथा मोह राजा को जोतते हैं, उतने-उतने अंशों में गुणस्थानों की सीढ़ियां चढ़ते जाते हैं। वास्तव में यह पण्डित मरण की भूमिका का स्वरूप है। जब उन्हें यह पक्का विश्वास हो जाता है कि अब उनका जीवन कुछ ही दिनों एवं घंटों का है, तब उनका संकल्प मजबूत हो जाता है, वे संथारे का पच्चक्खाण कर लेते हैं तथा पण्डित मरण को अंगीकार करते हैं। लेकिन ऐसी परिस्थिति विरले भाग्यवान पुरुषों को ही मिलती है। प्रायः यह देखा जाता है कि जब व्यक्ति अन्तिम घड़ियां गिन रहा होता है, उस समय उसे ऐसे वातावरण में रखा जाता है, जहाँ पर उसके सगे-सम्बन्धी भी नहीं जा सकते । डाक्टरों की देख-रेख में उसे इन्टेनसिव केअर यूनिट में रखा जाता है। वहाँ न तो उसे बोलने दिया जाता है और न ही किसी से मिलने दिया जाता है। अपने अन्दर को व्यथा वह अन्दर ही अन्दर लेकर सदा के लिए चला जाता है। __ मृत्यु के समय पारिवारिकजनों एवं इष्ट मित्रों की विशेष जिम्मेदारियाँ हैं। मृत्यु के समय वह व्यक्ति For Private and Personal Use Only
SR No.034243
Book TitleMrutyu Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP M Choradia
PublisherAkhil Bhartiya Jain Vidvat Parishad
Publication Year1988
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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