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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से आर्त ध्यान करते हुए मृत्यु को प्राप्त करना । वाल मरण वाले का अन्तिम समय मोह-माया में उलझा हुआ और दयनीय बन जाता है। जिसने जिंदगी में कोई सत्कार्य नहीं किया, केवल पाप-कार्यों में ही रचा-पचा रहा, महारम्भ और महापरिग्रह में ही डूबा रहा, निश्चित ही उसकी मृत्यु भयावह और दुःखद होती है। बाल मरण का मुख्य कारण मृत्यु की पूर्व तैयारी का अभाव है। इसके अलावा भोगों के प्रति जो आसक्ति होती है, वह मृत्यु पर्यन्त दूर नहीं होती। फल स्वरूप वह अत्यन्त दुःखी रहता है और उन भोगों के वियोग के दुःख को सहन नहीं कर पाता। वह मेरा-मेरा करते संसार में इतना लिप्त हो जाता है कि मृत्यु की तो कल्पना भी नहीं करता। वह राग-द्वेष की प्रगाढ़ ग्रन्थियों से जकड़ा रहता है। वह काम-भोगों में रचा-पचा रहकर अत्यन्त क्रूर कार्य करने लग जाता है। अतः मनोभावना शुद्ध नहीं हो पाती तथा दुःख रूप मृत्यु को प्राप्त करता है। क्रोध में, सफलता हासिल न होने पर दुःखी होकर आवेश में आकर आत्महत्या करना बाल मरण है। क्रोधी व्यक्ति सत-असत्, विवेक से विकल, कर्त्तव्यअकर्त्तव्य से बेभान एवं मर्यादाओं का अतिक्रमण कर जाता है। उसके हृदय में स्नेह एवं प्रेम-धारा सूख जाती है। सहानुभूति एवं सहयोग की प्रवृत्ति भी दब For Private and Personal Use Only
SR No.034243
Book TitleMrutyu Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP M Choradia
PublisherAkhil Bhartiya Jain Vidvat Parishad
Publication Year1988
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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