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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चारों ओर मण्डरा रही थी, लेकिन फिर भी उनके भाव उन्होंने अपने विचारों को नया निकृष्ट नहीं हुए । आयाम दिया । वे चिन्तन करने लगे । आत्मा की अमरता और शरीर की नश्वरता का उन्हें ज्ञान था । चिन्तन ने नया मोड़ लिया । अहो ! मेरे संसार पक्षीय ससुर मेरी सहायता करने आए हैं । ये मेरे कर्मों की निर्जरा कराने के लिए मेरे हितैषी हैं। शायद इन कर्मों को काटने में न जाने कितना समय लगता, लेकिन धधकते अंगारे मेरे सिर पर डालकर इन्होंने मेरा विशेष उपकार किया है । यह मेरी परीक्षा की घड़ी है। इसमें मुझे उत्तीर्ण होना है । घोर कष्ट एवं मरणांतिक वेदना के समय भी वे समता भाव में रहे। कुछ ही क्षणों में उनका सिर अग्नि पर रखी हुई खिचड़ी की तरह फदफद करने लगा । भावों के उच्चतम रसायन के कारण कुछ ही क्षणों में उन्होंने अपने सारे कर्मों को क्षय कर लिया और केवलज्ञान प्राप्त कर जन्म-मरण के चक्र से सदासदा के लिए मुक्त हो गए । बाल मरण 1 जीवन में बिना तैयारी के बिना धम - पालन के दुःखित - पीड़ित होते हुए जो मरता है, उसकी मृत्यु बाल मरण है । बाल मरण का अर्थ है विवेकहीन होकर हायहाय करते हुए, खेद, पश्चाताप, दुःख, शोक और विकलता For Private and Personal Use Only
SR No.034243
Book TitleMrutyu Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP M Choradia
PublisherAkhil Bhartiya Jain Vidvat Parishad
Publication Year1988
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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