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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org CONS I नही बल्कि चंपाबाई को अपने महल में बुलाकर सम्मान के साथ सोनेके चूडा की पहरामणी दी । और अपने शाही बाजे भेजकर जुलुस की शोभा द्विगुणी बढाई कोक पक्षी जैसे सूर्य को चाहतां है वेसे अकबर को हीरसूरि से मिलने की बडी तमन्ना हुई। और इधर बुलाने के लिये आपनें सोचा, एतमादखां गुजरात मैं बहोत रहे है । वो जरूर पहचानते होंगे । उसने एतमादखां को बुलाया और हीरसूरिजी का परिचय पूछा । तब एतमादखांने कहा, वो तो बडा धर्मात्मा-फकीर है - दुसरा खुदा है । पैदल चलते है, सोना और सुंदरी से दूर रहते है। स्वयं केश लुंचन करते है । माधुकरी से जीवन-वृत्ति चलाते है इत्यादि कई गुणों का गुणगान करके बहुत प्रशंसा की । तब अकबरने अपने हस्ताक्षर से विनंति पत्र और दुसरा आग्रा जैनसंघ का पत्र, इन दोनों पत्र के साथ माणुकल्याण और थानसिंहरामजीको अहमदाबाद गुजरात के अपने सुबा शाहबखां के पास भेजा। दोनों सेवकने अविरत प्रयाण कर अहमदाबाद आकर शाहबखां को दोनों पत्र दे दिये Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाहबखांने विनम्र होकर पत्र को शिर पर चढायाँ । और पत्र पढने लगे । इसमें क्या लिखा होंगा व सुनने को वाचक भी बडे उत्साहित बन गये होंगे । "आचर्य हीरसूरि को हाथी, घोडे, पालखी, हीरा, मोती, इत्यादि किसी भी साज की आवश्यता हो वो देकर सम्मान के साथ दिल्ली की और प्रस्थान करावें ।" शाहबखां पढकर बहुत आनन्दित हुये और मनमें शर्म भी आई कि मैने उस महापुरूष का बड़ा अपराध किया है । इसलिए मैं अपना मुख उस महात्मा को कैसे दिखाऊं । पुनः सोचा, वो तो बड़े करूणा के अवतार है। सबके उपर अनुग्रह की छांट डालनेवाले है । इस तरहसे अपने मनको उत्साहित करके अहमदाबाद के अग्रणी श्रावकों को बुलाया और दोनों पत्र दिये । पत्र को पढकर सब हर्ष और खेद के हिंधोले हीँधने लगे । बादशाह के आमंत्रण से आनन्द हुआ और खेद भी इसलिये हुआ कि, बादशाह बुलाकर क्या करेंगे ? किसी विरोधीने बादशाह को क्या-क्या कहा होगा ? क्या मालुम ? म्लेच्छ राजवी है । ONDO 00 8 For Private and Personal Use Only
SR No.034239
Book TitleJjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhratnavijay
PublisherJagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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