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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Vas,cenas pavasas,kas coxasemarken, दिल्ही के मेइन रोड पर भारी हल-चल मचगई है । बैन्ड और शहनाई के मधुर स्वर चारोओर गगन को स्पर्श कर रहे है | जैन शासन की जय, महातपस्वी चंपाबाई की जय, ऐस जय-जय के बुलंद नादोनें दिशाओं को शब्दमय बना दिया । महा तपस्वी का भव्य जुलुस सडक पर से जा रहा है । झरूखेमें बैठे हुवे संपूर्ण हिंदुस्तान के बादशाह अकबर इस जुलुस को देखकर पास में खडे हुए सेवक को पूछने लगा, यह किसका जुलुस है ? तब सेवक ने कहा, राजन् ! चंपाबाई श्रावीकानें छ:महिना का उपवास (रोजा) किया है । वह अपने जैसा रोजा उपवास करते है, ऐसा नहीं, किंतु दिनरात खाना नहीं और सूर्योदय के बाद आवश्यकता हो तो गर्मपाणी पीते है तथा सूर्यास्त के बाद पाणी भी नहीं लेते है । ऐसी महान उपवास की तपश्चर्या श्रावीकाने की है। अकबर यह सुनकर राहु से ग्रस्त सूर्य कैसा ठंडा हो जाता है ऐसा 'ठंडा हो गया और आश्चर्य से बोलने लगा, ऐसा क्या हो सकता है ? हम एक दिन रोजा करते है तो थक जाते है, और रात को खाना खा लेते है । बादशाहने दो आदमी मंगल चौधरी और कमरूखां को चंपाबाई के पास भेजा और कहलाया । आप, ऐसी महान तपश्चर्या किसके प्रभाव से कर सकते हो ? तब चंपाबाईने कहा, मेरा तप देव-गुरूकी कृपा से चल रहा है । राग द्वेष आदि १८ दोषों से रहित वीतराग देव है । और कंचन-कामिनी के त्यागी-पाद विहारी-माधुकरी वृत्ति से जीवन निर्वाह करनेवाले गुरू है । ऐसे त्यागी मेरे गुरूदेव विजय हीरसूरीश्वरजी महाराज अभी गुजरात के गंधार बंदर में बीराजित है । उनके प्रभाव से मेरी महान तपश्चर्या चल रही है । बादशाहनें सेवकों द्वारा चंपाबाई का वृत्तांत सुना सुनकर बडा आनन्द हुआ और विजय हीरसूरिजी को मिलने की बडी उत्कंठा हुई । इतना ही SICSSACROCHESPRESHERPROTHESSPIRSHESTRICTSSCRTHISEDIOSESSIS 7 For Private and Personal Use Only
SR No.034239
Book TitleJjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhratnavijay
PublisherJagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
Publication Year
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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