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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जन्मभूमि पर अपना स्वभाविक प्रेम उछलने लग जाता है। कहा है कि "जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" यह लोकोक्ति वास्तविक चरितार्थ है । सूरिजी भी जन्मभूमि को देखकर आनन्दमय हो गये वहां से प्रयाण कर मेड़ता नगर के राजा का सत्कार स्वीकार कर वैराटनगर आदि शहरों में होते हुए लाहोर से छः कोस की दूरी पर लुधियाना नामक शहर में आ पहुँचे । यह समाचार लाहोर के कोने कोने में छा गया कि सूरिजी पधारते हैं। तदनन्तर अकबर बादशाह के मन्त्रियों में से एक अबुलफजल का भाई फायजी (जो दश हजार सेना का अधिपति था) और प्रत्येक नागरिक जन गुरुदर्शन के लिये लुधियाना आये, आगन्तुक भक्तों के साथ सूरिजी पंचकोशी वन में पधारे जहां कि अकबर का महल था, पंचकोशी वन में आये सूरिजी को समझकर भानुचन्द्र जी सशिष्य गुरुचरणों में आये, यहां से सशिष्य विजयसेन सूरिजी लाहोर शहर के पास एक गंज नामक शाखापुर में आ पहुँचे। इधर बादशाह के हुक्म से शहर की सजावट होने लगी और व्याख्यान का पंडाल तैयार होने लगा सूरिजी के आवास स्थान की सजावट अद्भुत चित्र विचित्र मय होने लगी। __ सूरिजो को लेने के लिये अकबर चतुरंगी सेना शाही बाजे एवं राज मान्य बड़े बड़े अफसर सहित मन्त्रियों के साथ जाकर धूमधाम पूर्वक लाहोर नगर में प्रवेश कराते हुए पंडाल में विजयसेन सूरिजी के मुखारबिन्द से मांगलिक प्रवचन सुनने लगे, कुछ समय बाद अकबर के आग्रह से सूरिजी ने भानुचन्द्रजी को उपाध्याय पद से विभूषित किया । पदवी के उपलक्ष में श्री संघ ने बड़ा भारी उत्सव किया जिसमें शेख अबुलफजल ने भी ६०० रुपये दिये और गरीब गुरषों को अन्न वस्त्र देकर संतुष्ट किये। For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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