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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पदवी अकबर ने दे दी। गुरु शिष्यों द्वारा जगद् गुरु हीरविजय सूरिजी के उत्तराधिकारी प्राचार्य कुल किरीट विजयसेन सूरिजी की विद्वत्ता और अलौकिक प्रतिभा सुनकर अकबर प्रसन्न चित होकर बुलाने के लिये आमन्त्रण पत्र भेजा जिसमें लिखा था कि आपके प्रिय शिष्य भानुचन्द्र जी के कथनानुसार निश्चय किया है कि आज से शत्रुजय तीर्थ का कर मेरे राज्य में कोई नहीं लेगा, अब आपका पवित्र शत्रुजय तीर्थ कर मोचन पूर्वक आपको सहर्ष दे रहा हूँ ! साथ ही साथ निवेदन है कि आपके पट्टालंकार असाधारण प्रभावशाली विजयसेनसूरिजी को लाहोर भेजने की कृपा करें। मगसुदाबाद नगर में महाराणा प्रताप का एवं अकबर बादशाह का विनती पत्र पाकर जगद् गुरुदेव यहां से रवाना होकर राधनपुर पहुँचे। इतने में स्तम्भनतीर्थ की प्रतिष्ठा करके विजयसेनसरिजी आपके चरणों में आ पहुँचे। आप गुरु सेवा में रहते हुए, गुरु मुखार बिन्द से दोनों आमन्त्रण पत्र के वृत्तान्त से वाकिफ होकर आमोदित होने लगे। कुछ दिन के बाद जगद् गुरु ने कहा कि हे सेन सूरि ! अकबर ने तुम्हारे लिये आमन्त्रण भेजा है और तुम को जाने से लाभ ही होगा इसलिये जल्दी जाना चाहिये। जगद् गुरुदेव की आज्ञा पाकर विजयसेनमूरिजी सं० १६४६ मार्गशीर्ष शुक्ला तृतीया के दिन शुभ मुहूर्त में राधनपुर से लाहोर की तरफ रवाना हुए, जहां कि अकबर बादशाह इन्तजारी में बैठा था। विजयसेन सूरिजी विहार करते हुए पाटण आदि नगर के वासियों को प्रतिबोध देते हुए देलवाड़ा आबू तीर्थ की यात्रा कर सिरोही पधारे। सिरोही का अधिपति सूरत्राण एवं नागरिक लोगों ने मिलकर सूरिजी का शानदार स्वागत किया। आपके उपदेश से राजा ने मद्य मांस का परित्याग किया। यहां से सूरिजी चलकर नारदपुरी आये, जहां कि आपकी जन्मभूमि थी चाहे जैसी अवस्था में क्यों न हो मगर For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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