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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (गोचरी) कर लाये थे, गुरुदेव सदैव एक वखत आहार पानी किया करते थे, मगर वह भी परिमित और नीरस । इधर बादशाह ने निज कार्य को सम्पन्न कर दरबार में अबुल फजल द्वारा आचार्यदेव को बुलाया अद्भुत फकीर रूप के वेष में प्राते हुए गुरुदेव को देखते ही ससंभ्रम सिंहासन से उठकर आगे आते हुए बादशाह ने सविनय शिर झुकाकर नमनपूर्वक शिष्टाचार के साथ गुरुराज के पीछे पीछे अपने दरबार में जाने के लिये कदम उठाया, महल में जाने पर अनेक जड़ियों से सुसज्जित विशिष्ठ आसन पर बैठने के लिये प्रार्थना करने पर सूरिजी ने उत्तर में कहा कि प्रायः इनके नीचे कोई चींटी आदि सूक्ष्म जीव हो तो मेरे वजन से मर जाय इसलिये जैन शास्त्रों में केवली सर्वज्ञों ने अहिंसावादियों के लिये वस्त्राच्छादित जगह पर पांव रखने की भी मना की है बादशाह ने उनकी जीवों के प्रति ऐसी दया देखकर आश्चर्यमय होते हुए सोचा कि फकीर शायद जानता तो नहीं है कि इसके नीचे कोई जीव है, इतना विचार कर गलीचे के एक प्रदेश को ऊँचा उठाया तो उसके नीचे बहुत सी चींटियां नजर पड़ीं, उन्हें देखते ही और चकित हो गया, तदनन्तर स्वर्णमय कुर्सी पर बैठने के लिये श्राग्रह किया, परन्तु सूरिजी ने इनका भी उत्तर देते हुए कहा कि त्यागियों के लिये धातु का स्पर्श करना सख्त मना है, इतनी बाद सुनकर बादशाह अचरज में पड़ कर मौन धारण करता हुआ एक तरफ खड़ा रहकर सोचने लगा कि अब ऐसे बाबा को कहां बैठावें ! इतने में सूरिजी अपने ऊनी आसन बिछा कर सशिष्य बैठ गये, उनको बैठे हुए देखकर बादशाह भी सूरिजी के सामने यथोचित आसन पर बैठ गया, तत्पश्चात् अबुल फजल आदि कर्मचारी अपने अपने योग्य स्थान पर बैठ गये, इतने में बादशाह के तीनों पुत्र (शेख सलीम, मुराद और दानियाल) आकर मस्तक झुकाकर बैठ गये। For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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