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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जांभ कलेवा में खाता था, अत्याचार और अन्याय का प्रचार था, और चारों तरफ त्राहिमां त्राहिमां मच रहा था। ऐसे विकट समय में निबन्ध नायक महापुरुष का जन्म हुआ था, और छोटीसी उम्र में दीक्षा लेकर के आगम सिद्धान्तों के अध्ययन के साथ २ योगोद्वहन किया, पन्यास, उपाध्याय, प्राचार्य और जगद्गुरुपद कहां और कैसे प्राप्त किया ? कट्टर विधर्मी अकबर को कहां और कैसे प्रतिबोध दिया ? राजा और महाराजाओं को कुपथगामी से कहां और कैसे बचाया ? जागीरदार और सुबाओं को सप्तव्यसनों का त्याग कहां और कैसे करवाया ? अकबर द्वारा जजियाकर. मतधन, कैसे छुड़वाया ? कैसे और किन तीथों के पट्टे करवाये ? किस प्रकार और कितने मास अकबर द्वारा दया पलबाई ? कितने संघ निकलवाये ? कितनी दीक्षाएं तथा प्रतिष्ठाएं करवाई ? कितना तप जर, और स्वाध्याय किया ? किन २ ग्रन्थों का सम्पादन किया ? समाजोत्थान के लिये कितना परिश्रम किया ? कैसा त्याग और वैराग्यमय जीवन था ? इन सारी घटनाओं को एक साथ इस निबन्ध में पाठक पढ़ सकेंगे। यद्यपि निबंध का कलेवर छोटा है किन्तु सार चीजें बहुत कम होने पर भी महत्वपूर्ण हुआ करती हैं और संक्षेप में होने से पाठक आसानी से समय निकाल सकेंगे । अवश्य एक बार पढ़ने का कष्ट करें। वह महापुरुष आज अपने बीच नहीं है फिर भी कीर्तिरूप लता संसार में फैल रही है और उस पुरुष की कीर्ति का ही यह संग्रह है, इस जीवन वृत्तान्त से आज का मानव प्रेरणा ले सके यही उद्देश्य लिखने का है, चूकि आज का संसार बड़ी तेजी से बदल रहा है, सभी देश एक दूसरे पर हमले की सोच रहे हैं जिससे रक्तपात यानि हिसा अत्यंत बढ़ रही है और आगे न मालूम कितनी बढेगी ? इस पस्तक द्वारा हिंसा से मानव विराम ले और अहिंसा की तरफ आगे बढे तो लेखक अपना परिश्रम सफल समझ सकता है। For Private and Personal Use Only
SR No.034238
Book TitleJagad Guru Hir Nibandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavyanandvijay
PublisherHit Satka Gyan Mandir
Publication Year1963
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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