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________________ ' (१) मामनेपर रूपीया न देवे और सत्कार भी न करे और उलटा तीस्कार करे वह अब्बवहारीया है। हे प्रदेशी आप भी इन्ही च्यार व्यवहारीयों के अन्दर दुसरा. व्यवहारीया हो कारण कि आप मनमें तो ठीक समझ गये हो । परन्तु बाहरमें आदर. सहार नहीं कर शक्ते हो हे प्रदेशी जब मनमे समझ ही गये वो अब लज्जा किस बातकि है खुलमखुला धर्मको स्वीकार क्यों न कर लेते हो । (८) प्रश्न हे भगवन् आप हस्ताम्बलकि माफीक प्रत्यक्षमे मुझे जीव और शरीर अलग अलग बतलादो तो म्है अबी आपका हना मान शक्ता हु नही तों मेरा माना हुवा ही धर्म अच्छा है ? (उत्तर) केशीश्रमण उत्तर दे रहे थे इतनेमे एक वृक्षके पत्र गोरसे चलने लगे तब केशीस्वामि प्रदेशी रानासे पुच्छा कि हे प्रदेशी यह वृक्षके पत्र क्यु चल रहे है तब प्रदेशी बोला कि हे भगवान् गायुकायके प्रयोगसे वृक्षका पत्र चल रहे है | केशी स्वामिने काहा हे प्रदेशी वायुकायाको कोइ अम्बले जीतनी वायुकाय दीखा शक्ता है प्रदेशीने काहा नही भगवन् वायुकाय बहुत सूक्षम है। केशी स्वामिने काहा हे प्रदेशीच्यार शरीर संयुक्त वायुकाया भी नही दीखा शके तो अरूपी जीवकों हस्ताम्बल कि माफीक केसे बता शके हे प्रदेशी छदमस्थ जीवों दश पदार्थोकों नही देख शक्ते हैं ... (१) धर्मास्तिकाय जो जीव पुद्गलोंको चलन साहीता देवी है (२) मधर्मास्तिकाय मों जीव पुदलोंकों स्थिर होनेमे महिला देती है।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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