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________________ ( ६४ ) (४) ऋषियोंके परिषदा कि आसातना करने से मुंढ तुच्छ आदि शब्दोंका दड करते है हे प्रदेशी आप जानते हुवे ऋषियोंकि आसातना करते हो और दंड मीलने पर अप्रके अपमानका दावा करते हो अर्थात् हे राजन् आप जानते हुवे ही मेरेसे प्रतिकुल प्रश्न करने है यह बात केशीश्रमण मनःपर्यव ज्ञानसे प्रदेशी राजाके मनकी वातकों जाणी थी कि प्रदेशी राजा समझ जाने पर भी प्रतिकुल प्रश्न करते है । इस लिये मुंढ तुच्छ ज्ञब्दोंकि सजा दी थी। हे भगवान् है आपका प्रथम ही व्याख्यासे समझ गया था परन्तु प्रतिकुल प्रश्न कीये. वगेर मेरे और मेरा पक्ष वालोंको विशेष ज्ञान मील नही शक्ता है वास्ते विशेष ज्ञान प्राप्तिके इरादासे ही मेने यह प्रतिकुल प्रश्न कीये है । हे राजन् आप जानते है कि लौकमे व्यवहारीयें कितने प्रकार के होते है ? हां भगवान् है जानता हू कि व्यवहारीये प्यार प्रकारके होते है यथा (१) जेसे कीसी साहुकारका रुपिया लेना है वह मागनेकों जाने पर दैनदार रूपीया देवे और साहुकारका आदर सत्कार करे वह प्रथम व्यवहारीया है (२) मागने पर रुपया दे देवे परन्तु सत्कार न करे यह भी दुसरे व्यवहारीया ही है (३) मागने पर रुपीया न देवे परन्तु नम्रतापूर्वक सत्कार करके कहे की है अमुक सुदतमें आपके रूपया सुत सहीत देउगा वह तीसरा व्यवहारीया है.
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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