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________________ (२) ही दुःखी बना देते है परन्तु म्है उन्ही मचके मुहमे एक जबरजस्त लगाम और गलेमे एक बडा रसा डाल दिया है कि जिन्होंसे सिवाय मेरी इच्छाके कीसी भी उन्मार्ग बीलकुल ना भी नही शैकता है अर्थात् मेरी इच्छानुस्वार ही चलता है। . ... (घ) हे गौतम,आपके अश्व कोन और लगाम रसा कोनसा है ? ... (उ) हे. मगवान ? इस लोकमें बडा साहसोक रौद्र उन्मार्ग चलनेवाला 'मन' रूपी दुष्टाश्च है वह अज्ञानी जीवोंकों स्वइच्छा घुमाये करता है परन्तु म्है धर्मशिक्षण रूपी लगाम और शुभ. ध्यान रूपी रसासे खेचके अपने कब्जे कर लिया है कि अब किसी प्रकारके उन्मार्गादिका भय नही रखते हवा म्है आनन्दमें विचरता हु । हे प्रज्ञवान, आपने अच्छी युक्तिसे यह उत्तर दिया हैं परन्तु एक प्रश्न मुझे और भी पुच्छना है ? परिषदाकों बडा हो मानन्द होता है। -- मौतम हे क्या रुपाकर फरमावे । (८) हे गौतम इस लोकके अन्दर भनेक कुपन्य ( खराब मार्ग ) और बहुतसे जीव अच्छे रहस्तेका त्याग कर कुपन्थकों स्वीकार करते है । उन्हीसे अनेक शरीरी मानसी तकलीफो उठाते है में है गौतम माप इन्हीं कुपंथसे वचके सन्मार्ग पर कीस तरहे . . (उ) हे भगवान-इस लोकके अन्दर जीतने सन्मार्ग और 'उन्मार्ग है वह सर्व भरे जाने हवे है अर्थात सुपंथ कुपन्थको महै ठीक ठीक जानता हु इसी वास्ते कुपन्थका त्यागकर सुपन्थ पर छानसे चलता हु।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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