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________________ * भाग तथा सर्व स्थितिका स्थान असंख्याते है उन्ही असंख्याते स्थानपर जन्ममरण करे जेसे एक स्थान जन्ममरण कर स्पर्श लिया है अब दुसरी दफे उन्ही स्थानपर अनेकवार जन्ममरण करे वह गीनतीमें नहीं आवे परंतु नहीं स्पर्श कीये हुवे स्थानको स्पर्श कर मरे वह गीनतीमें आवे इसी माफीक अस्पर्श कीये हुवे सर्व स्थानोंको जन्ममरण द्वारे स्पर्श करते करते सर्व अध्यवशय स्थानको स्पर्श.करे उन्हीको भावापेक्षा चादर पुद्गलपरावर्तन केहते है / कालपूर्ववत् (8) भावापेक्षा सूक्ष्मपुद्गल परावर्जन-पूर्वोक्त जो अध्यवशयेके असंख्याते स्थान है उन्हीको क्रमासर स्पर्श करे जेसे प्रथम स्थानको स्पर्श कीया बादमें कालान्तर दुसरेको स्पर्श करे अगर विचमे अन्यस्थानको जन्ममरण कर स्पर्श करे वह गीनतीमे नही परन्तु क्रमःसर करे वह गीनतीमे आवे एवं तीजो चोथो पांचमो छटो यावत् क्रमःसर चरमस्थान स्पर्श करे इन्ही को भी अनन्तोकाल लागे है उन्हीको भावारुपेक्षासूक्ष्मपुद्गल पवावतर्न कहेते है और कितनेक आचार्योंकी यहभी मन्यता है कि जो नारककि जघ० 10000 वर्ष कि स्थितिसे लगाके 33 सागरोपमकी स्थितिका असंख्याते स्थान है उन्ही सर्वको अस्पर्श * कोस्पर्श कर सव स्थानोंको जन्ममरणद्वारे पुरण कर देवे एवं देवतोंमे 31 सागरोपम तथा मनुष्य तीर्यचमे ज. अन्तर
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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