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________________ थोकडा नं. 15 ( पुद्गलपरावर्तन) असंख्याते वर्षका एक पल्यापम होता है दश कोडाकोड पन्योपमका एक सागरोपम होता है दश कोडाकोड सागरोपमका एक उत्सर्पिणी काल तथा दश कोडाकोड सागरोपमका एक अवसर्पिणी काल होता है इन्ही उत्सर्पिणी अवसर्पिणीकों मीलाके वीस कोडाकोड सागरोपमकों शास्त्रकारोंने एक कालचक्र कहा है एसे अनन्ते कालचक्रका एक पुद्गलपरावर्तन होता है वह प्रत्यक जीवों भूतकालमें अनन्ते अनन्ते पुद्गलपरावर्तन कीये है विशेष बोधके लिये पुद्गलपरावर्तनकों च्यार प्रकारसे बतलाते है. यथा-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव / प्रत्यकके दो दो भेद है (1) सूक्ष्म, (2) बादर. वह इस थोकडा द्वारा बतलाया जावेगा. ( 1 ) द्रव्यापेक्षा बादर पुद्गलपरावर्तन-लोकमें रहे हुवे द्रव्य जिन्हीको जीव ग्रहन करते है वह आठ वर्गणा द्वारे अहन करते है यथा-औदारीकशरीर द्वारे, वैक्रयशरीर द्वारे, आहारीकशरीर द्वारे. तेजसशरीर द्वारे, कार्मणशरीर द्वारे, श्वासो. श्वासद्वारे, भाषा द्वारे, मन द्वारे, इन्ही आठ वर्गणासे एक
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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