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________________ ५८ निकलते हुवे देवकूरू उत्तरकूरू युगलक्षेत्र और विजयके विचमें मर्यादा करनेवाले हस्तिके दन्तके आकार मेरूपर्वतके पास जायलागे है. (४) वृतलवैताड्य पर्वत हेमवय, एरणवय, हरिवास, रम्यक्वास वह च्यार युगल मनुष्योंका क्षेत्र है इन्हीके मध्यभागमें च्यार वृतल वैताडयपर्वत है. (४) चितविचितादि निषेडपर्वतके पासमें और सीतानदीके दोनो तटपर चित और विचित दो पर्वत है इसी माफिक निलवन्त पर्वतके पास में सीतोदानदीके तटपर जमग समग दो पर्वत है. (१) जम्बुद्विपके मध्यभागमें गिरिराज मेरूपर्वत है. इति. (विवरण) __(१) दो सो (२००) कञ्चनगिरिपर्वत पचवीस जोजन धरतिमें १०० जोजन धरतिसे उंचा मूलमें १०० जो० लम्बा चोडा मध्यमें ७५ जो० उपरसे ५० जोजन विस्तारवाला है तीनगुणी जाझेरी परद्धि सर्व कञ्चनमय है। . (२) चौतीस दीर्घ वैताड्यपर्वत पचवीस गाउ धरतीमें है पचवीस जोजन धरतीसें उंचा पचास जो० विस्तारवाला है। उन्होंकि दोनो तर्फ बाह ४८८ जो० १६ कला है जीवा १०७२० जो० १२ कला धनुषपीष्ट १०७४३ जो० १५ कला है प्रत्यक वैताड्यपर्वतके अन्दर दो दो गुफावों है (१) तमसगुफा (२) खंडप्रभागुफा वह गुफा ५० जोजनकि लम्बी १२
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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