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________________ [३] (प्र०) केवली समुदघातसे निवृत होने बाद कौनसे योग पर प्रयूजे ! (उ०) मनयोग (सत्य व्यवहार), वचनयोग (सत्य व्यवहार) काययोग (हलन चलन तथा पहिले लिये हुवे पाट पटल संधारादि ग्रहस्थको पीछा दे । (प्र०) सयोगी केवली मोक्ष जावे ? (उ०) नहीं नावे कारण अयोगी होनेसे भोक्ष होती है। (प्र०) मोक्ष जानेवाले पहिले योगोंका निरोध करते है ? (उ०) (१) मनयोग-संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्ताके जघन्य योगसे असंख्यातमें भाग मनका योग रहा था उसका निरोध करे। (२) वचनयोग-वेरिन्द्रिय पर्यप्ताके नघन्य योगसे असंख्यात भाग बाकी रहा था उसका निरोध करे। (३) काययोग-सुक्ष्म पणग (निगोद ) जीवके ' पर्याप्ताके जघन्य योगसे असंख्यात भाग हीन काययोग था उसका निरोध करे। अर्थात् पहिले मनयोग पीछे वचनयोग पीछे काययोग इस तरह निरोध करे । असंज्ञी (संग रहित) अयोगी, अलेशी चौदवें गुणस्थान पर अ इ उ कल यह पांच लघु अक्षर उच्चारण करे। इतनी स्थिति पूर्ण करके जन्म, जरा, रोग, सोग, भयको दूर करके केवली मोक्ष जाते है। इस लिये सयोगी केवली मोक्ष नही जाते है परन्तु अयोगी ही मोक्ष जाते है। श्रीरस्तु, कल्याणमस्तु । सेवं भते सेवं भते तमेव संचम् ।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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