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________________ [४] वह वचनापेक्षा समु० जीवमें आहारीक घणा अनाहारीक भी घका । मनुष्यमें भांगा ३ सिद्ध भगवान् एक या बहू वचन अनाहारी है सर्व भांगा ५१-१२-७८-३ एवं १४४ भांगे। (४) लेश्याहार-स लेश्या समु० जील और २४ दंडक एक वचनापेक्षा स्याताहारीक स्यातानाहारीक बहुत वच. नापेक्षा समु० जीवों और पांच स्थावरमें आहारीक घणा अना. हारीक त्रिघणा शेष १९ दंडकके तीन तीन भांगा करनेसे ५७ एवं कृष्ण लेश्या परन्तु दंडक २२ ज्योतीषी वैमानिक वर्मके वास्ते भाग १७ दंडकका ५१ एवं निल लेश्याका ११ कापोत लेश्याका ५१ एवं तेजो लेश्या दंडक १८ समु० जीव और १८ दंडक एक वचनापेक्षा स्याताहारीक स्यातानाहारीक बहू वचनापेक्षा समु० जीव और १५ दंडकमें तीन तीन भांगा ४८ और पृथ्वी पाणी वनास्पतिमें छे छे भागा ( असंजीवत् ) एवं १८ मीलके १६॥ पद्मलेश्या समु० जीव और तीन दंडक एक वचन पूर्ववत् बह वचनापेक्षा तीन तीन भागा १२ एवं शुक्ल लेश्याका भी भांगा १२ तथा अलेश्य समु० जीव मनुष्य और सिद्ध एकवचन या बहू वचन सर्व मनाहारीक है भांगा ५७-५१-५१-५११६-१२-१२ कुल भागा ३०० द्वारम् । (६) द्रीष्टीवार-सम्यग्द्रीष्टी समु० जीव और १९ बंडक एक वचनापेक्षा स्याताहारीक स्यातना हारीक बहु वचनापेक्षा नमु० जीव और १६ दंडकमें तीन तीब मांगा ५१ और तीन वैलेन्द्रियमें छे छे भाग एवं १८ भांगा । मिथ्या द्रीष्टी समु.
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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