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________________ [४४] जीव ओर पांच स्थावरमें आहारीक भी घणा अनाहारीक मी घणा शेष १९ दंडकोंमें तीन तीन मांगा पूर्ववत् एवं ५७ भांगा एवं अमन जीवोंका भी पूर्व भव्ववत् १७ भांगा समझना । नो भव्व नो अभव्य एक जीव ओर घणा जीवों अपेक्षा आहारीक नही किंतु अनाहारीक है एवं सिद्ध भी समझना इतिहारम् ११४ भांगा.. (३) संज्ञीद्वार-समु० जीव १ और १६ दंडक एक वचन स्यात आहारीक स्यात् अनाहारीक बहू वचनापेक्षा जीवादि १७ दंडकमें तीन तीन भांगा होनासे ५१ भांगा होता है । असंज्ञी समु. जीव ओर २२ दंडक एक वचनापेक्षा स्यात् आहारीक म्यात अनाहारीक । बहू वचनापेक्षा समु० जीव ओर पांच स्थावरमें आहारीक घणा अनाहारीक भी घणा. तीन वैकले न्द्रिय और तीर्यच पांचेन्द्रिय इन्ही च्यार बोलोंमे तीन तीन भांगा पूर्ववत् एवं १२ भांगा तथा नारकी दश भुवनपति व्यंतर मनुष्य इन्ही तेरहा दंडकके प्रत्येक दंडकमें छे छे भांगा होते है । यथा-- (१) आहारीक एक (२) अनाहारीक एक (३) आहारीक एक अनाहारिक एक युगम् (४) , , , घणा (५) , घणा , एक (६) , , , घणा एवं १३ दंडकके ७८ भांगा हुवे । नोसंज्ञी नोअसंज्ञी समु० जीव और मनुष्य स्यात् आहारीक स्यात् अनाहारीक ।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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