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________________ [२३ रहती एवं अप० वनस्पतिकाय मी कहना और तेऊ, वाऊ तीन विकले द्रीमें तीन लेश्या रहती हैं। और तीर्यच पंचेन्द्री तथा मनुष्यमें छे लेश्या होती है और वे अपनी २ लेश्यामें मर ने और उत्पन्न भी होते हैं। कृष्ण लेशी नारकी अवधी ज्ञानसे नील लेशीकी अपेक्षा स्वरूप क्षेत्र जांग देखे वह भी अविशुद्ध नाणे देखे जैसे कोई पुरुष धरती के तले खडा है और दूसरा पुरुष शम भूनीपर खड़ रहे तो शन भूनीकी अपेक्षा धरतीके तलेका मनुष्य कमक्षेत्र देख सका है। निल लेशी अवधीज्ञानी नारकी कापोत लेशी अवधी की अपेक्षा कम क्षेत्र सोमी अविशुद्ध देखता है जैसे ५ पुरुष धरती पर और दुपरा पर्वत पर खड है तात्पर्य यह है कि विशुद्ध लेश्यासे ज्ञान भी विकटू होता है । यहां पर देवताओंका अधिकार नहीं है परन्तु देवताओं में भी विशुद्ध लेश्याओंको विशुद्ध ज्ञान होता है। कृष्ण, नील, कापोत, तेनो और पद्म इन पांच लेश्यावालोंको ज्ञान हो तो स्यात् दो म्यात तीन स्यात् चार होते हैं जैसे ---- दो-मति, श्रुति ज्ञान तीन-मति, श्रुति, अवधिज्ञ न तीन-मति, श्रुति, मनः पर्यवज्ञान चार - मति, श्रुति, अवधि, मनः पर्यज्ञान शुक्ल लेश्यामें पूर्ववत् २-३-४ या केवल ज्ञान भी होता है वारण शुक्ल लेश्या १३ वे गुणस्थान तक होती है । सेवं भंते सेवं भंते तमेव सचम् ।
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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