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________________ में यहांपर सम्यक् ज्ञान का ही विवेचन करुंगा. इसके अन्तर्गत आत्मीक ज्ञान के साथ ओर व्यवहारीक ज्ञान का समावेस भी हो सक्ता है। ज्ञान पश्च प्रकार के है यथा मतिज्ञान, श्रुतिज्ञान, अवधि. ज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान. इन पांचो ज्ञान को संक्षिप्त से कहा जाय तो दो प्रकारके है. (२) प्रत्यक्षज्ञान (२) परोक्षज्ञान जिस्मे प्रत्यक्ष ज्ञान के दो भेद है इन्द्रिय प्रत्यक्षज्ञान, नोइन्द्रिय प्रत्यक्षज्ञान. जिस्मे भी इन्द्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान का पांच भेद है (प्रत्येक इन्द्रियों द्वारा पदार्थे का ज्ञान होना) यथा (१) श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्षज्ञान-शब्द श्रवणसे ज्ञान होना. कि यह अमुक शब्द है. (२) चक्षुइन्द्रिय प्रत्यक्षज्ञान-रूप देखनेसे ज्ञान होना कि यह अमुक रूप है. .. (३) घ्राणेन्द्रिय प्रत्यक्षज्ञान-गन्ध लेने से ज्ञान होना कि यह अमुक गन्ध है. (४) रसेन्द्रिय प्रत्यक्षज्ञान-रस स्वादन करने से ज्ञान होना कि यह अमुक रस है. - (५) स्पर्शन्द्रिय प्रत्यक्षज्ञान-स्पर्श करनासे ज्ञान होना कि यह अमुक स्पर्श है. दुसरा जो नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान है वह भूत भविष्य काल कि बातें हस्तामल कि माफीक जान सके उनके तीन भेद है (१) अवधिज्ञान, (२) मनःपर्यवज्ञान (३) केवलज्ञान. जिस्मे अवधिज्ञान के दो भेद है (१) भवप्रत्य (अपेक्षा) (२) क्षोपशमनत्य, भषप्रत्यतो नरक और देवताओं को होते है जसे नरकमे या देवतों में जीव उत्पन्न होता है वह सम्यग्दृष्टि हो तो निश्चय अवधिज्ञानी होता है और मिथ्यादृष्टि हो तो विभंगज्ञानी होता है और दुसरा जोक्षोपशमप्रत्ययो मनुष्य और तीर्यचं पांचेन्द्रियको अच्छे अध्य व.
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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