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________________ २२७ (२) उपशम भावके दो भेद है (१) उपशम (२) उपशम निष्पन्न जिसमें उपशम तो मोहिनी कर्मका और उपशम निष्पनके अनेक भेद हैं, उपशम क्रोध, उ० मान, उ. माया, उ० लोम, उ. राग, उ० द्वेष, उ. चारित्र मोहिनी, उ. दर्शन मोहिनी, उ. सम्यक्त्व लब्धी, उ० चारित्र लब्धी, छमस्थ कषाय, वीतराग इत्यादि। (३) क्षायक भाव--क्षायक भाषके दो भेद हैं (१) मायक (२) क्षायक निष्पन्न जिसमें क्षायक तो आठ कम्ौका क्षय और मायक निष्पन्नके ३१ भेद हैं यथा । (१) ज्ञानावर्णीको पांच प्रकृति क्षय होनेसे अनन्त केवल ज्ञानको प्राप्ति होती है । (२) दर्शनावर्णीकी नौ प्रकृति क्षय होनेसे अनन्त केवल दर्शनकी प्राप्ति होती है । (३) वेदनीयको दो प्रकृति क्षय होनेसे अनन्त अव्याबाध गुणकी प्राप्ति होती है। (४) मोहनीयकी दो प्रकृति क्षय होनेसे अनन्त क्षायिक समकित गुणकी प्राप्ति होती है। (५) आयुष्यकी चार प्रकृति क्षय होनेसे अनन्त अवगाहना गुणकी प्राप्ति होती है। (६) नामकर्मकी दो प्रकृति होनेसे अनन्त अमूर्ति गुण प्राप्त होता है । (७) गोत्रकर्मकी दो 'प्रकृति क्षय होनेसे अनन्त अगुरु लघु गुणकी प्राप्ति होती है। (८) अंतरायकी पांच प्रकृति क्षय होनेसे अनन्त वीर्य गुणकी प्राप्ति होती है । ५ । ९।२।२।४।२।२।५। एवं ३१। । .. (४) क्षयोपशम भावके दो भेद है,-क्षयोपशम और क्षयोपशम निष्पन्न ।क्षयोपशम तो चारकर्मीका ज्ञानावरणीय, दर्शना. घरणीय मोहिनीय, अंतराय ) और क्षयोपशम निष्पन्न के ३२ भेद हैं. यथा ज्ञानावरणीय कर्मका क्षयोपशम होनेसे मति ज्ञान, श्रुति ज्ञान, अवधि ज्ञान, मनःपर्यव ज्ञान, और आगमका पठन, पाठन तथा मति अज्ञान, श्रुति अज्ञान, विभंग ज्ञान, एवं आठ बोलकी
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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