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________________ कालसे मिथ्यात्वमें रमण करता २ स्वाभावहीसे कर्म पतन करके द्रव्य, क्षेत्रादिका संयोग मिलने से प्रथम औपशम सम्यक त्वको ग्रहण कर चतुर्थ गुणस्थानकको प्राप्त करता है, वहां प अच्छा निमित्त मिलनेसे क्रमशः उत्तरोत्तर गुणोंकी प्राप्ति कर अंतमें मोक्ष सुखको भी प्राप्त करलेता है। यदि अच्छा निमत । मिले तो चतुर्थ गुणस्थानकसे गिरता हुवा सास्वादन गुणस्थाना पर आता है यथा दृष्टांत:-कोइ पुरुष खीरखांड ( दुधपाक) भोजन करने के वाद वमन होने पर गुलचटा स्वाद रहता है। इस माफिक सम्यक्त्वको वमन करता हुवा सास्वादन गुणस्थाना पर आता है अथवा गंभीर घंटाका नाद. कम होते २ रणका शब्द पीछे रहता है या जीवरूपी वृक्ष सम्यक्त्व रूपी फल मो। रूपी पवन के चलनेसे गिरकर मिथ्यात्व रूपी जमीन पर। पहुंचा तब तक सास्वादन गुणस्थानक कहलाता है इसकी स्थिति ६ आवलीकाकी है। इससे कौनसे गुणकी प्राप्ति हुई ? कृष पक्षीका शुक्ल पक्षी हुवा और उत्कृष्ट देशोण अर्द्ध पुद्गल परावर्तन करके नियमा मोक्ष जावेगा। (३) मिश्र गुणस्थानकका लक्षण-जैसे श्रखंडको स्वार कुछ खट्टा और कुछ मीठा होता है इसी तरह मिश्र मुबालेका परिणाम मिश्रभाव रहता है । यथा दृष्टान्त-किसी नगरके बाहर क्षान्त्यादि गुणालंकृत मुनि महाराजके पधारनेकी खबर सुनो नगर के सब लोग धर्म देशना सुनने को गये उस समय एक मिा सेठ भी धर्मदेशना सुनने के लिये चला, मगर रस्तेमें अकस्मार काम हो जानेसे विलम्ब हो गया इतने में मुनि महाराज देशना विहार कर गये । यह बात सेठने सुनी और वह सोचने लगा कि मैं कैसा अभागा हूं कि मुझे महात्माके दर्शन तक भी न हुपा खेर. अब चलो दूसरे तापसादि है उनके पास जा आवे कहीं धर्म सुनना है धर्म तो सब एकसाही है। इससे यह हुवा कि
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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