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________________ १५० गमनागमन करे ऐसे ही अन्य काया में भी गमनागमन करे उसे " संवह " कहने है । उत्पल और पृथ्वी में गमनागमन करे तो जिसका दो भेद एक भवापेक्षा और दूसरा कालापेक्षा जिसमें भवापेक्ष ज० दो भव उ० असं० भव और काल ज० दो अंतर मु० उ० असं० काल इसी तरह अप, तेज, वायु, भी समझ लेना वनस्पति ज० दो उ० अनं ० भव और काल ज० दो अंतरमु० उ० अनं० काल तीन विकलेन्द्रिय में ज० दो भव और काल पृथ्वीवत् उ० सं० भव और सं० काल तीर्थच पंचेंन्द्रिय और मनुष्य ज० दो भव और काल पृथ्वीवत् उ० ८ भव करे और काल प्रत्येक पूर्व कोड । ( २८ ) आहार - २८८ बोल का आहार ले परंतु नियमा छे दिशी का ( देखो शीघ्रबोध भाग ३ ) ( २९ ) स्थिती - न० अंतर मु० उ० दश हजार वर्ष । (३०) समुद्घात- तीन पावे, कषाय, वेदनी और मरणन्ति तथा समोईया दोनो प्रकार से मरे । ( ३१ ) चवण - उत्पल का जीव चवके ४९ जगहजावे | ४६ तीर्थच ३ मनुष्य कर्म भूमीका पर्या अपर्या• समुच्छिम | (३२) मूलद्वार - सर्व प्राण, भूत, जीव, सत्व याने सर्व संसारी जीव उत्पल कमल के मूल, स्कंध, त्वचा, पत्र, केसराकणिकादि पणे अनंतीवार उत्पन्न हुवा है यथा असइ अहुवा अ ंतिरकुतो । इति । सेवते सेवते तमेव सम् 00000000000000000 इति श्री शीघ्रबोध भाग ८ वा समाप्तम्. 0000000000000000
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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