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________________ १४६ वि० वचन, विसंयोगी १२ त्रिक संयोगी ८ उ. नि.. उ. नो. नि. नो० उ०नि० नो० उ०नि० नो० - - ( १६ ) आहारक- आहारक है भांगा २ पूर्ववत् । ( १७ ) वृत्ति-अवृत्ति है भांगा २ पूर्ववत् । (१८ ) क्रिया-सक्रिय है भांगा २ पूर्ववत् । ( १९) बन्ध-सातकर्म का बन्धगा, आठ कर्म का बन्धगा जिसका भांगा ८ पूर्ववत् । (२० ) संज्ञा-आहारादि चारों संज्ञा पावे जिसके भांगा ८० पूर्ववत् । लेश्या द्वारसे देखो। ( २१ ) कषाय क्रोधादि चारों कषाय पावे भांगा ८० पूर्ववत् ( २२ ) वेद-एक नपुंसक है भांगा दो पूर्ववत् । (२३) वेदबन्ध-स्त्री, पुरुष, नपुंसक तीनों वेद के बांधने वाले है भांगा २६ पूर्ववत् । उश्वास द्वारकी माफीक । (२४) संज्ञी-असंझी है भांगा दो पूर्ववत् । - (२५) इंद्रिय-सइंन्द्रिय है, भांगा दो पूर्ववत् । (२६) अनुबंध याने काय स्थिती-ज. अंतर मु० उ० असंख्याते काल। (.२७) संवह-उत्पल कमल का जीव अन्य स्थान में जाकर पीछा उत्पल कमल से आवे जैसे पृथ्वी और उत्पल कमल में
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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