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________________ १३८ रत्नप्रभा के ऊपर के चरमान्त की पृच्छा जैसे बिमला दिशा मैं बोल २८ समझना रत्नप्रभा को वर्ज के ६ नरक के उपर के और सातों नारकी के नीचे के चरमान्त ९३ और १२ देवलोक के नीचे ऊंचे के २४ चरमान्त एवम् ३७ चरमांत में बोल पाये ३३ जिसमें जीव के देश के १२ एकेन्द्रिय पंचेंद्रिय के घणे देश भी लेणे, प्रदेश का ११ अजीब का १० | लोक के पूर्व का चरमांत का परमाणु पुद्गल क्या एक समय में लोक के पश्चिम के चरमांत तक जा सके ? हां गौतम ! पूर्व के चरमांत का परमाणु एक समय में पश्चिम के चरमांत में जा सक्ता है। एवम् पश्चिम से पूर्व, दक्षिण से उत्तर, उत्तर से दक्षिण तथा ऊंचेलोक के चरमांत से नीचेलोक के चरमांत और नीचेलोक के चरमांत से ऊंचेलोक के चरमांत तक एक समय में जा सकता है जिस परमाणु में तीव्र वर्ण, गंध, रस, स्पर्श होता है वह परमाणु एक समय में १४ राजलोक तक जा सक्ता है । इति । सेवंभते सेवंभंते तमेव सच्चम् | -++ थोकडा नं० १०२. श्री भगवती सूत्र श० ११-उ० १०. ( लोक. ) हे भगवान ! लोक कितना बडा है ? गौतम ! चौदह राज का है। यानि असंख्याते कोडोन कोड योजन लम्बा चोडा है । जिस्की स्थापना -
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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