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________________ १३७ उपरवत् ७ नारकी १२ देवलोक ९ नवधेयक ५ अणुत्तरविमान १ इसी प्रभारा पृथिवी (सिद्धशिला ) एवम् ३४ बोलों के चारों दिशों के चरमांत में तथा समुचय लोक के चारों दिशों के घरमांत मिलके १४० चरमांत में बोल छत्तीस छत्तीस पावे। ___ ऊंचेलोक के चरमान्त की पृच्छा-ऊँचेलोक के चरमान्त में (१) एकेन्द्रिय और अनेन्द्रिय का देश सदा काल साश्वता है (२) एकेन्द्रिय और अनेन्द्रिय का घणे देश और एक बेन्द्रिय का एक देश (३) और घणे बेन्द्रिय के घणे देश एवम् तेन्द्रिय का २, चौन्द्रिय का २, पंचेन्द्रिय का २, मिलकर ९ बोल तथा प्रदेश (१०) पकेन्द्रिय और अनेन्द्रिय के घणे प्रदेश (साश्वता) (११) एकेन्द्री अनेन्द्रिय का घणा प्रदेश और एक बेन्द्रिय के घणे प्रदेश (१२) घणे बेन्द्रिय के घणे प्रदेश एवम् २ तेन्द्रिय का, २ चोन्द्रिय कार, पंचेन्द्रिय कार, मिलकर १८ भेद हुवे और अजीव के १. भेद है सपी के स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश, परमाणु पुरल और अलपी के धर्मास्तिकाय देश, प्रदेश अधर्मास्तिकाय देश, प्रदेश, आकाशास्तिकाय देश, प्रदेश, एवम् सर्व मिलाकर ऊंचेलोक के परमान्त में बोल २८ पावे। नीचेलोक के चरमान्त की पृच्छा बोल ३२ पावे, यथा घणे एकेन्द्रिय के घणे देश, एक बेन्द्रिय का एक देश, धणे बेन्द्रिय के घणे देश, पवम् तेन्द्रिय २ चौन्द्रिय २ पंचेन्द्रिय २ अनेन्द्रिय २ मिलाकर ११ तथा प्रदेश-धणे एकेन्द्रिय के घणे प्रदेश एक बेन्द्रिय का घणे प्रदेश, घणे बेन्द्रिय के घणे प्रदेश पवम् तेन्द्रिय के २, चोन्द्रिय के २ पंचेन्द्रिय कार,अनेन्द्रिय के २, मिलाकर ११ अजीघका पूर्ववत सर्व ३२ इसी माफिक ९ ग्रेवेयक ५ अनुत्तर विमान पक इसीप्रभारा ( सिद्धशिला ) के इन १५ के ऊंचे तथा नीचे ३० चरमान्त समझना।
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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