________________
१२०
नहीं है कि जिसने इन पुद्गलों को ग्रहण न किया हो एकवार नहीं परन्तु अनन्तीबार इसी तरह ग्रहण कर करके छोड़ा है जैसे प्रयोगशा के नौ दंडक और उनके भेद करके बताये हैं, उसी माफिक मिश्रशाके भी भेद समझ लेना विशेषा पुदगल वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, और संस्थानपने प्रणम्या है उसके ५३० भेद है वा शीघ्रबोध दूसरे भागसे समझलेना, एवं प्रयोगशा, मिश्रशा विशेषा के १७७७८० भेद हुवे ।
सेवेमंते सेवभंते तमेव सच्चम् । ___ -- ** -- थोकडा नं. ६६.
श्री भगवती सूत्र श०८-उ० ६.
(बन्ध) बंध दो प्रकारके होते हैं, एक प्रयोगबंध जो किसी दूसरेके प्रयोग से होता है. और दूसरा विशेषबंध जो स्वभाव से ही होता है। . (१) विशेष बंध के दो भेद-अनादिबंध और सादोबंध जिसमें अनादीबंध के तीन भेद है धर्मास्तिकाय का अनादीबंध है एवं अधर्मास्तिकाय तथा आकाशास्तिकाय का भी अनादि बन्ध है इन तीन के स्वस्थ प्रदेश के साथ अनादिबंध है।
धर्मास्तिकाय का अनादिबंध है वह क्या सर्वबंध है या देश बंध१ गौतम ! देशबंध है क्योंकि संकल के माफिक प्रदेश से प्रदेश बंधा हुवा है, एवं अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय भी बमझ लेना।