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________________ ११६ पन्नीयां हैं एवं ६१-५४-२०६० मिलके सर्व २१७५ मेर पांच दंरक के हुवा। (६) छठे दंरक में पर्याप्तापर्याप्ता में वर्णादिके ४०२५ भेद यथा दूसरे दशक में १६१ बोल कह आये हैं उनको ५ वर्ण २ गंध ५ रस ८ स्पर्श और ५ संस्थान के साथ गुणा करनेसे ४०२५ भेद हाते है, क्योंके १६१ बालों में वर्णादि २५ पचपीस बोल गीननेसे १०२५ बोल हुवे। (७) सात दंडक के ११६३१ भेद यथा तीसरे दंडक में मो बोल ४९१ शरीर कह आये है, जिसमें वर्णादि २५ बोल पाते है षास्ते वर्णादि २५ बोल से गुणा करनेसे १२२७५ बोल हुये, परन्तु १९१ भेद में १६१ भेद कामण शरीर के है और कार्मण शरीर चौफरसी होता है इसलिये १६१ भेदके चार चार स्पर्श कम करनेसे ६४४ भेद कमती हुवे बाकी ११६३१ भेद सातवे इंटक के। (८) आठवें दंडक के १७८२५ भेद यथा चौथे दंडक में ७१३ जीयों की. इन्द्रियां कही हैं जिसमें वर्णादि २५ पचविश पोल पावे वास्ते ७१३ बोलों को वर्णादि २५ बोलसे गुणा करनेसे १७८२५ भेद आठवे दंडक के हुवे।। (९) नौवें दंडक के ५१५२३ भेद यथा पांचवे दंडक के २१७५ भेद कहे हैं, उनको वर्णादि २५ बोलसे गुणा करने से ५५३७५ भेद हुवे परन्तु एक २ इन्द्री में एक २ कार्मण शरीर । और कामण चौस्पर्शी है, इसलिये २८५२ बोल कम करनेणे शेष ५१५२३ भेद नौ दंडक के हुवे एवं नवों दंडक के ८१-१६११९१-७१३-२१७५-४०२५-१९६३१-१७८२५-५१५२३ सब मिला से ८८६२५ भेद हुवे, सो इतने प्रकारके प्रयोगशा पुद्गल प्रणमसे हैं पदलों की परीही विचित्रता है, पेसा नगत में कोहनीय
SR No.034232
Book TitleShighra Bodh Part 06 To 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherVeer Mandal
Publication Year1925
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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