SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३० ) शीघ्रबोध भाग १ लो. २ पुरुषवेद और बीवेद । तीजा देवलोकसें सर्वार्थसिद्ध विमा: नतक पुरुषवेद है सन्नी मनुष्य औ सन्नीतिर्यचमें वेद पावे तीन, सिद्ध अवेदी है। ( १२ ) पर्याप्त नारी देवतामें पर्याप्त पांच (मन और भाषा साथमें बांधे ) पांच स्थावरमें पर्याप्ती पावे चार क्रमसे, तीन विक्लेंद्रिय और असन्नी तिर्यचमें पर्याप्ती पावे पांच क्रमसे, असन्नी मनुष्य में चार में कुच्छ उणी क्रमसे; सन्नी मनुष्य सन्नी तिर्यच और युगलीआमें पर्याप्ती पावे छ. सिद्धोमें पर्याप्ती नहीं है । (१३) दिट्ठी - नारकी, भुषनपति, व्यंतर ज्योतिषी, बारहा देवलोक, सन्नीतिर्यच और सन्नी मनुष्य में दृष्टि पावे तीनों, नवग्रैवेयक में दो ( सम्यक० मिथ्या० ) अथवा तीन पावे. पांच अनुत्तर विमानमें एक सम्यकदृष्टि, पांच स्थावर, असन्नी मनुष्य और ५६ अंतरद्वीप के युगली आमें एक मिथ्यादृष्टि, तीन विकलेंद्रिय असन्नी तिर्यंच और ३० अकर्मभूमि युगली में द्रष्टि पावे दो ( १ ) सम्यकूदृष्टि ( २ ) मिथ्यादृष्टि. सिद्धों में सम्यकदृष्टि है. (१४) दर्शन - नारकी, देवता और सन्नीतिर्यचमें दर्शन पावे तीन क्रमसे, पांच स्थावर बेइंद्रिय तेई द्रियमें दर्शन पावे एक अचक्षु, चौरेन्द्रिय, असन्नोतिर्यच असनी मनुष्य और युगलीआ में दर्शन पावे दो क्रमसे । सन्नी मनुष्य में दर्शन पावे चार, सिद्धों में केवल दर्शन है (१५) नाग - नारकी देवता और सन्नीतिर्यचमें ज्ञान पावे तीन क्रमसे, । पांच स्थावर, असन्नी मनुष्य और ५६ अंतर atest युगलीआमें नाण नहीं है, तीन विकलेंद्रिय, असन्नी तिर्य
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy