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________________ (३७०) शीघ्रबोध भाग ५ वां. छोडकर शेष तीन समौसरण आयुष्य चारों गति का बांधे और भव्य अभब्य दोनो होय. चार ज्ञान और सम्य क. दृष्टि में समौसरण, क्रियावादी आयुष्य वैमानिक देवता का बांधे और नियमा भव्य हाय। मिश्रदृष्टिमें समौसरण दो विनयवाद। और अज्ञानवादी. आयुष्यका अबंधक और नियमा भव्य होय.। मनःपर्यव ज्ञान और नो संज्ञा में समौसरण एक क्रियावादी आयुष्य वैमानिक देवता का बांधे और नियमा भव्य होय.। कृष्णादि ३ लेश्या में समोसरण ४ पावै जिसमें क्रियावादी आयुष्य का अबंधक और नियमा भव्य होय । शेष तीनो समौसरण चारो गति का आयुष्य बांधे और भव्याभव्य दोनो होय तेजो आदि ३ लेश्या में समौसरण चारो पावै जिसमें क्रियावादी आयुष्य वैमानिक का बांधे और नियमा भव्य होय । शेष तीनो समौसरण नरक गति छोडकर तीनो गतिका आयुष्य बांधे और भव्याभव्य दोनो होय. अलेशी, केवली, अजोगी, अवेदी, और अकाई में समौसरण क्रियावादी का आयुष्य अबंधक और नियमा भव्य होय. शेष बाइस बोलो में समौसरण चारों पावै जिसमें क्रियावादी आयुष्य वैमानिकका बांधे और नियमा भव्य होय । शेष तीनो समौसरण आयुष्य चारो गति का बांधे और भव्याभव्य दोनों होय. इति तीसवां शतकका प्रथम उदेसा समाप्त । , बांधी शतक २६ वा उद्दसा दूसरा अणंतर उववन्नगा का पूर्व कह आये है उसी माफक चौवीस दंडको के ४७ बोल इस उद्देस में भी लगा लेना. और समोसरण का भांगा प्रथम उद्देसावत् कहना परन्तु सब बोलो में आयुष्य का अबंधक है क्योंकि यह उद्देसा उत्पन्न होने के प्रथम समय की अपेक्षा से कहा गया है और प्रथम समय जीव आयुष्य का अबंधक होता है. एवम् चौथा
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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