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________________ समौसरणाधिकार. (३६९ ; घादी. तेजोलेश्याम आयुष्य न बांधे. शेष बोलो में आयुष्य. मनुष्य और तीर्यच का बांधे भव्य अभव्य दोनों होय. एवम् तेउ. काय. वायुकाय के २६ बोलों में समौसरण २ आयुष्य तीर्यच का बांधे और भव्य अभव्य दोनों होय. तीन विकलेन्द्री के ३१ बोलों में समोसरण २ अक्रियावादी और अज्ञानवादी. तीन ज्ञान और मम्यक ष्टि आयुष्य न बांधे शेष बोलों में मनुष्य तीर्यच दोनो का आयुष्य बांधे तीन ज्ञान और सम्यक्दृष्टिमें स० एक क्रियावादी आयुष्यका अबन्ध नियमा भव्य शेष बोलोंमें स. दो आयु म तीर्यचका और भव्य अभव्य दोनों होय । तीर्यच पंचेन्द्रींक ४० वालों में से कृष्णपक्षी 1 अज्ञानी और भिथ्यादृष्टि में समौसरण ३ अक्रियावादी, अज्ञानबादी और विनयवादी, आयुष्य चारों गति का बांधे भव्य अभव्य दोनों होय ज्ञान और सम्यकदृष्टि में समौमरण १ क्रियावादी, आयुष्य बैमानिकका बांधे और नियमाभव्य होय. मिश्रदृष्टिमें समौसरण २ विनयवादि और अज्ञानवादि आयुष्यका अबंधक और नियमा भव्य होय । कृष्णलेशी, नील लेशी, कापोत लेशीमें समोसरण चारो पावे. जिसमें क्रियावादी आयुष्य का अबंधक और नियमा भव्य होय । शेष तीन समौसरणमें चागंगतिका आयुष्य बांधे और भव्य अभव्य दोनों होय । तेजोलेशी पद्मलेशी शुक्ललेशीम समौसरण चारो जिसमें क्रियावादी वैमा निक का आयुष्य बांधे और नियमा भव्य होय । शेष तीन समौमरण नारकी छोड कर तीन गतिका आयुष्य बांधे और भव्य अभव्य दोनों होय शेष बाईस बोलोमे समौसरण ४ जिसमें क्रियावादी वैमानिक का आयुष्य बांधे और नियमा भव्य होय बाकी तीन ममौमरण चारी गतिका आयुष्य बांधे भव्य अभव्य दोनो होय. मनुष्य दंडक में पूर्वोक्त जो ४७ बोल कह आये है जिसमें कृष्ण पक्षी. चार अज्ञानी, और मिथ्याष्टि में क्रियावादी
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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