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________________ ४७ बोलोंका अधिकार. (३६५ ) (प्र) जब अधिकार सादृश है तो अलग २ शतक कहने का क्या कारण है ? (उ) कर्म, करिया, करे, करसी. यह क्रिया काल अपेक्षा सामान्य व्याख्या है और कर्म बांधा वांधे बांधसी. यह बंध कोल अपेक्षा विशेष व्याख्या है. शेषाधिकार बन्धी शतक माफीक समजना. इति शतक २७ उद्देशा ११ समाप्त. थोकडा नं. ५८ श्री भगवती सूत्र श० २८ पूर्षात ४७ बोलों के जीव पापादि कर्म कहां के बांधे हुए कहां भोगवे १ इसके भांगे ८ है यथा (१) तीर्यचमें बांधा तीर्यच में ही भोगवे (२) तीर्यच में बांधा नरको भोगवे (३) तीर्यचमें बांधा मनुष्य में भोगवे (४) तीर्यच में बांधा देवता में भोगवे (५) तीर्यच में बांधा नारकी और मनुष्य में भोगवे (६) तीर्यच में बांधा नारकी और देवता में भोगवे (७) तीर्यच में बांधा मनुष्य और देवता में भोगवे. (८) तीर्यच में बांधा नारको मनुव्य देवता तीनों में भोगवे एवम् भांगां ८ । पहिले जो शतक २६ उद्देशा १ में जो ४७ बोलों का प्रत्येक दंडक पर बर्णन कर आये है. उन सब बोलों में समुच्चय पाप कर्म ओर ज्ञानावरणीयादी ८ कर्मों में भांगा आठ आठ पाये. इति प्रथमोद्देशः . पूर्वोक्त बांधी शतक के ११ उदेशावत इस शतक के भी ११ उदेशे है और प्रत्येक उदेशे के बोलों पर उपर लिखे मुजब साठ २ भांगे लगा लेना. इस शतकसे अव्यवहाररासी मानना भी • सिद्ध होता है और प्रज्ञापना पद ३ बोल ९८ तथा जुम्माधिकारसे देखो. . .' इति शतक २८ उददेशा ११ समाप्त. -+000
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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