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________________ ( ३९४) शीघ्रबोध भाग ५ वा. . सर्व से सर्ष. इस भांगे से सम्प्राय कर्मबांधे बाकी तीनों भांगे शुन्य सम्प्रायकर्म जगतमे रुलाने वाला है और इर्यावही मोक्ष नगर में पहुंचाने वाला है दोनुं बंध छूटने से जीव मोक्ष मे जाता है इति-समाप्तम् सेवं भंते सेवं भंते तमेव सञ्चम् ॥ थोकडा नं० ५५ (श्री भगवतीजी सूत्र० २६ उ० १) (४७ बोल की बांधी) इस शतक में कमों का अति दुर्गम्य सम्बन्ध हैं. इस वास्ते गणधरों ने सूत्रदेवता को पहिले नमस्कार करके फिर शतक को प्रारंभ किया है. गाथा-जीवय १ लेश्या ६ पक्खिय २ दिछी ३ नाण ६ अनाण सत्राओ५ वेय ५ कसाये ६ जोगे ५ उवओगे २ एकारसवि. ट्ठाणे ॥१॥ अर्थ-समुच्चय जीव १॥ कृष्णादि लेश्या ६ अले शी७ सलशी ८॥ पक्ष० कुष्णपक्षी १ शुक्लपक्षी २।। दृष्टी० सम्यक्त्वदृष्टि १ मिश्र. दृष्टि २ मिथ्यादृष्टि ३ ॥ मत्यादि ज्ञान ५ सनाणी ६ ॥ अज्ञान ३ अनाणी ॥ मंज्ञा ४ नोसंज्ञा ५॥ वेद३॥ संवेदी ४ अवेदी ५ ॥ कषाय.४ सकषाय ५ अकषाय ६॥ योग० ३ सयोगी अयोगी ५ ॥ उपयोग० साकार १॥ अनाकार २॥ एवम् ४७ चौवीसों दंडकों में से कौन २ से दंडक में कितने २ भेद पावे वह नीचे के यंत्र द्वारा समजलेना।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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