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________________ सम्प्रायकर्म. ( ३९३) में भांगे २६ से इर्यावही कर्मवत् बांधे. क्योंकि अवेदी नवमें गुणस्थानक के २ समय बाकी रहने पर ( वेदोंका क्षय होते है ) होजाते हैं और सम्प्राय कर्मका बंध दशवें गुणस्थानक तक है सम्प्राय कर्म क्या इन चार भांगों से वांधे १ सादि सांत, २ सादि अनंत, ३ अनादिसांत, ४ अनादि अनंत, तीन भांगों से बाँधे, और १ मांगा शुन्य, यथा. १ सादिसांत भांगों से बांधे सम्मायकर्मबांधनेकी जीवों के आदि नहीं है. परन्तु यहां अपेक्षायुक्त वचन है जैसे कि जीव उपशम श्रेणी करके ग्यारह गुणस्थानक वर्तता हुवा इर्यावही कर्म बांधे परंतु इग्यारमें गुणस्थानक से नियमा गिरकर सम्प्राय कर्म बांधे इस अपेक्षा से सम्प्राय कर्मकी आदि है और क्षपक श्रेणीकर के बारमें गुणस्थानक अवश्य जावेगा. वहां सम्प्राय कर्म का बंध नहीं है इसलिये अतभी है २ सादि अनंत मांगा शन्य है क्योंकि ऐसा कोई जीव नहीं है कि जिसके सम्प्राय कर्मकी आदि हो. यदि उपशम श्रेणी की अपेक्षा से कहोगे तो वह नियमा मोक्षभी जायगा तो अन्त पणाकी बाधा आवेगी वास्ते यह भांगा शास्त्रकारोंने शन्य कहा है. ३ अनादि सांत. भांगा भव्य जीवोंकी अपेक्षा से. क्योंकि जीवके सम्प्राय कर्मकी आदि नहीं है परंतु मोक्ष नायगा इसवास्ते अंत है। .. ४ अनादि अनंत अभव्य जीवकी अपेक्षासे जिसके सम्प्राय कर्म की आदि नहीं है और न कभी अंत होगा. ___सम्प्राय कर्म क्या इन चार भांगों से बांधे १ देश (जीवका) से देश (सम्प्राय कर्मका )२ देशसे सर्व ३ सर्व से देश ४ सर्व से सर्व. ..
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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