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________________ कर्म प्रकृति विषय. ( ३१७ ) १३२ प्रकृतियोंका उदय समुच्चय होते है जिसमे २० प्रकृति सर्व घाती है २७ प्रकृति देशघाती है ७३ प्रकृति अघाती है इस्कों लक्षमें लेके उदय प्रकृतिकों समझना चाहिये । उदय प्रकृति १२२का विपाक अलग २ कहते है । ( १ ) क्षेत्र विपाकी प्यार प्रकृति है जोकि जीव परभव गमन करते समय विग्रह गतिमें उदय होती है जिसके नाम नरकानुपूर्व तीर्यचानुपूर्वी मनुष्यानुपूर्वी और देवानुपूर्वी । ६ ( २ ) जीव विपाकी. जिस प्रकतियोंके उदयसे विपाकरत जीवकों अधिकांश भोगवते समय दुःख सुख होते है । यथा - ज्ञाना. वर्णिय पांच प्रकृति, दर्शनावर्णिय नौप्रकृति. मोहनिय अठाबीस प्रकृति अन्तरायकि पांच प्रकृति गौत्र कर्म कि दो प्रकृति. वेदनिय कर्मकि दो प्रकृति - सातावेदनिय - असातावेदनिय तीर्थकर नामकर्म सनाम बादरनाम पर्याप्तानाम स्थावरनाम सूक्षमनाम अपर्याप्तानाम सौभाग्यनाम दुर्भाग्यनाम सुस्वरनाम दुःस्वरनाम आदेयनाम अनादेयनाम यशः कीर्तिनाम अयशः कीतिनाम उश्वासनाम एकेन्द्रिय जातिनाम बेइन्द्रय जातिनाम तेइन्द्रिय० चोरेिंद्र पांचेन्द्रियः नरकगतिनाम तीर्यंचगतिनाम मनुष्य गतिनाम देवगतिनाम सुबिहागतिनाम असुविधागतिनाम एवं ७८ प्रकृति जीवविपाकी है । G (३) भवविपाक जैसे नरकायुष्य तीर्थचायुष्य मनुष्यायुष्य और देवायुष्य एवं च्यार प्रकृति भवप्रत्यय उदय होती है। (४) पुद्गलविपाकी प्रकृतियों । यथा-निर्माण नाम स्थिर नाम अस्थिर नाम शुभनाम अशुभ नाम वर्णनाम गन्धनाम • रसनाम स्पर्शनाम अगारु लघु नाम औदारोक शरीर नाम वैक्रयशरीर नाम आहारीक शरीर नाम तेजस शरीर नाम कारमण
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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