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________________ कर्मोकि उत्तर प्रकृति १५८. (३०५) अवयव से तकलीफों उठानी पडे जेसे मस नसूर दोजीभों अधिक दान्त होठों से बाहार निकल जाना अंगुलीयों अधिक इत्यादि । इन आठ प्रकृतियोंको प्रत्येक प्रकृति कहते है अब प्रसादि दश प्रकृति बतलाते है। प्रसनाम-जिस प्रकृति के उदयसे त्रसपणा याने बेइन्द्रियादिपणा मोले उसे प्रसनाम कहते है । बादरनाम-जिस प्रकृतिके उदयसे बादरपणा याने जिसको छदमस्थ अपने चरमचक्षुसे देख सके यद्यपि बादर पृथ्वीकायादि पकेक जीव के शरीर दृष्टिगोचर नहीं होते है. तथपि उनोंके बादर नाम कर्मोदय होनेसे असंख्याते जीवोंके शरीर एकत्र होनेसे दृष्टिगोचर हो सकते है परन्तु सूक्ष्म नामकर्मो. दयवाले असंख्यात शरीर एकत्र होनेपर भी चरमचभुवालों के दृष्टिगोचर नहीं होते है। पर्याप्त नाम-जिस जातिमें जितनि पर्याप्ती पाती हो उनोंकों पूरण करे उसे पर्याप्तनाम कहते है पुद्गल ग्रहन करनेकि शक्ति पुद्गलोको परिणमानेकि शक्तिको पर्याप्ति कहते है। . प्रत्येक शरीर नाम-एक शरीरका एक ही स्वामी हो अर्थात् एकेक शरीरमें एकेक जीव हो उसे प्रत्येक नाम कहते है । साधारण वनस्पति के सिवाय सब जीवोंको प्रत्येक शरीर है. - स्थिर नाम-शरीर के दान्त हड्डी ग्रीवा आदि अवयव स्थिर मजबुत हो उसे स्थिरनामकर्म कहते है। शुभनाम-नाभी के उपरका शरीरको शुभ कहते है जैसे हस्तादिका स्पर्श होनेसे अप्रीति नहीं है किन्तु परोंका स्पर्श होते ही नाराजी हाति है ।
SR No.034231
Book TitleShighra Bodh Part 01 To 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukhsagar Gyan Pracharak Sabha
Publication Year1924
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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